Tuesday, June 17, 2014

हाथ से फिसलते हालात ...

तमाम आश्वासनों, बैठकों, तबादलों और कथित कठोर आदेशों-निर्देशों के बावजूद उत्तर प्रदेश में कानून एवं व्यवस्था किस तरह सुधरने का नाम नहीं ले रही, इसका प्रमाण है फिरोजाबाद में दो पुलिसकर्मियों की हत्या। यह घटना अपराधी तत्वों के दुस्साहस को नए सिरे से बयान करती है और साथ ही राज्य सरकार के दावों की कलई भी खोलती है। पुलिसकर्मियों की हत्या के बाद उनके परिजनों ने इस घटना के लिए पुलिस अधिकारियों को ही जिम्मेदार ठहराया। यह कहना कठिन है कि इस आरोप में कितनी सत्यता है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि जिन पर आरोप लगाए गए थे उन्हें निलंबित कर दिया गया है। हमेशा की तरह इस बार भी राज्य सरकार कड़ी कार्रवाई करने की बात कर रही है, लेकिन यह मानने से इन्कार कर रही है कि राज्य की कानून एवं व्यवस्था सवालों के घेरे में है। राज्य सरकार के रवैये के संदर्भ में सबसे चिंताजनक यह है कि वह कानून एवं व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति को स्वीकार करने के बजाय विरोधी दलों और मीडिया पर निशाना साधने में लगी हुई। पता नहीं क्यों उसे लगता है कि मीडिया उत्तर प्रदेश की घटनाओं पर कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी दिखा रहा है। क्या मीडिया की ओर से आपराधिक घटनाओं की उपेक्षा करने से उत्तर प्रदेश के हालात सुधर जाएंगे? राज्य सरकार अपना रवैया बदलने के लिए किस तरह तैयार नहीं, इसका ताजा प्रमाण है समाजवादी पार्टी के एक राष्ट्रीय महासचिव का यह बयान कि उत्तर प्रदेश की घटनाओं पर मीडिया की दिलचस्पी केंद्र सरकार की सुनियोजित साजिश का हिस्सा है। अगर अखिलेश सरकार भी ऐसा ही सोचती है तो फिर उत्तर प्रदेश में हालात सुधरने की उम्मीद करना व्यर्थ है। 1हत्या, लूट, दुष्कर्म और साथ ही अन्य अपराधों पर उत्तर प्रदेश सरकार के साथ-साथ सपा नेताओं का तर्क है कि अन्य राज्यों के आंकड़ों को देखा जाए तो उत्तर प्रदेश तीसरे-चौथे नंबर पर आता है। ऐसे तर्क देकर सच्चाई को छिपाया नहीं जा सकता। नि:संदेह आंकड़े वैसा ही कह रहे हैं जैसा राज्य सरकार कह रही है, लेकिन अन्य राज्यों की सरकारें बढ़ती आपराधिक घटनाओं पर न तो कभी मीडिया को कठघरे में खड़ा करती हैं, न विरोधी दलों अथवा केंद्र सरकार को। इसी तरह यह भी एक तथ्य है कि अपराध के आंकड़े इस पर निर्भर करते हैं कि राज्य विशेष में पुलिस आपराधिक घटनाओं की रपट दर्ज करने में तत्परता दिखाती है या नहीं? उत्तर प्रदेश सरकार चाहे जैसा दावा करे, इस राज्य में रपट दर्ज कराना एक टेढ़ी खीर ही है। इसके अतिरिक्त यह भी एक सच्चाई है कि अधिकांश घटनाओं में कानून एवं व्यवस्था को चुनौती उन तत्वों की ओर से दी जा रही है जो सपा नेता, कार्यकर्ता अथवा उनके समर्थक हैं। अतीत में इस सच्चाई को खुद सपा के बड़े नेता भी स्वीकार कर चुके हैं, लेकिन कोई नहीं जानता कि राज्य सरकार ऐसे तत्वों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने में सक्षम क्यों नहीं है? सपा नेता कानून एवं व्यवस्था की बिगड़ती हालत को लेकर जब-तब अधिकारियों को कठघरे में खड़ा करते हैं और रह-रहकर उनके तबादले भी किए जाते हैं, लेकिन पिछले दो वर्ष का अनुभव यह बताता है कि आए दिन होने वाले तबादलों से स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा है। बेहतर हो कि सपा के नीति-नियंता यह समङों कि सुधार की सबसे ज्यादा जरूरत शीर्ष स्तर पर है। ...

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