Friday, April 4, 2014

एकता की भावना से समाज स्वस्थ और प्रगतिशील होगा

ऋग्वेद में कहा गया है- तुम सब के विचार एक जैसे हों, मन एक समान हो। मिलकर चलो, परस्पर मिलकर बात करो। तुम्हारे मन एक होकर ज्ञान प्राप्त करे। अगर परस्पर विरोधी दिशाओं में चलोगे तो समाज को हानि होगी। जब हमारे संकल्प समान होंगे, हृदय परस्पर मिले हुए होंगे, हम सभी को मित्र की दृष्टि से देखेंगे तो समाज सुगठित रहेगा। जब हम सबके विचार, मन और चित्त समान उद्देश्य वाले होंगे तो हम परस्पर मिलकर रह सकेंगे। जब हम कदम से कदम मिलाकर चलते हैं तो सफलता मिलती है। वेद उपदेश देते हैं कि हमें अपने देश और देशवासियों की कीर्ति के लिए मिलकर काम करना चाहिए। इतना ही नहीं, हमें दूसरी धार्मिक निष्ठाओं व आकांक्षाओं का पूरा आदर करना चाहिए। हम अपनी मातृभूमि के ऋणी हैं क्योंकि इसने बहुत ही दयालुतापूर्ण, आकर्षक और उपयोगी द्रव्य साधन प्रदान किए हैं और इसलिए हमें इनकी ऐसे आराधना चाहिए जैसे हम ईश्वर की उपासना करते हैं। जब हम दूसरों में अपना प्रतिबिंब और अपने में दूसरों का प्रतिबिंब देखेंगे तो शांति बने रहेगी और उसे कोई भी भंग नही कर सकेगा। वेदों में विचारों की सार्वभौमिक अनुरूपता की बात की गई है। तुलसीदास जी भी कहते हैं - जहां सुमति तंह संपत नाना, जहां कुमति तंह विपद निधाना। परस्पर मिलकर विचार करो। विचारों से वाणी शुद्ध बनेगी और वाणी से कार्यों में एकता आएगी। जब हम सब मिलकर विचार करने में समर्थ होते हैं तो अपने हित और दूसरों के कल्याण के समन्वय का ज्ञान होने लगता है। इस संसार में हर प्रकार के लोग हैं और सब को यह जीवन यात्रा करनी है। विद्वानों, देवों का स्वाभाव रहा है कि साथ चलें, साथ संवाद करें और मिलकर विचार करें क्योंकि ऐसे स्वाभाव वाले लोग दूसरों के हित में अपना हित समझते हैं। समाज में रहने का यह एक मूल मंत्र है और केवल आत्महित न देखकर परहित भी देखना होगा। सृष्टि की यही स्थिति है सह-अस्तित्व का विधान। केवल विवेकहीन अपने हित और स्वार्थ को सर्वोपरि रखते हैं। ‘सर्व आशा मम मित्रं भवंतु’ (अथर्वेद) हम सब आपस में मित्र हों। यह मंत्र मनुष्य समाज को यह प्रेरणा देता है कि हम मन और मस्तिष्क से एक साथ हों ताकि एकता बनी रहें। जब तक हम समाज में एकता की भावना बनाए रखेंगे, हमारा समाज स्वस्थ और प्रगतिशील होगा। धैर्य, आत्मसंयम, प्रेम, आनंद संतोष को संयमित करना होगा। यह काम अकेले नहीं होगा। इसके लिए खुद से बाहर निकलना जरूरी है। jai guru ji

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