Saturday, April 23, 2016

जीवन का अर्थ ..(The meaning of life ..)


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जीवन और मृत्यु परमात्मा के हाथ में है। जीव को स्वयं न तो जन्म चुनने का अधिकार है और न ही मृत्यु प्राप्त करने का अधिकार है। जीवन जीने के बाद जब जीव मृत्यु में प्रवेश करता है तो उस अवस्था में उसे फिर जन्म लेने के लिए हजारों, लाखों वर्षो तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है, लेकिन जो सिद्ध पुरुष परमात्म-तत्व में लीन हो जाता है उसे पुन: गर्भ चुनने का अधिकार रहता है, वह स्वेच्छा से गर्भ चुन सकता है, लेकिन अन्य जीव वैसा नहीं कर सकते। जीव केवल जी सकता है, जीवन पर उसका कोई अधिकार नहीं होता। जब मृत्यु का काल आता है तो परमात्मा उसे अपने हाथों मृत्यु नहीं देता। वह जीव को स्वयं ऐसी प्रेरणा दे देता है कि वह स्वयं अपने आचरण से, अपने व्यवहार से जीवन को नष्ट कर देता है। बुद्धि विवेक से नियंत्रित होती है। जब जीव का अंतकाल आता है, तो उसकी बुद्धि भ्रमित हो जाती है। वह अच्छे-बुरे का विचार करना छोड़ देता है। अच्छा आचरण करना छोड़ देता है। उसके शरीर से तेज नष्ट हो जाता है। शक्ति क्षीण हो जाती है और विचार स्थिर नहीं रह जाता। वह स्वयं ऐसा आचरण करने लगता है कि उसका जीवन अशांत हो जाता है। काम, वासना व क्रोध के कारण उसका सारा जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता, फलत: उसका जीवन स्वयं काल के गाल में प्रवेश कर जाता है। देवताओं को पराजित करने वाले रावण का जब अंतकाल आया तो उसने नैतिक धर्म छोड़ दिया। उसका बल नष्ट हो गया, बुद्धि व विचार क्षीण हो गए और वह काल के चंगुल में फंस गया। परमात्मा किसी के नाश का भागीदार नहीं बनता। वह डंडे से किसी का सिर नहीं फोड़ता, लेकिन मनुष्य स्वयं ऐसा काम करने लगता है, वह विकारों से ग्रस्त हो जाता है। यदि मनुष्य निर्मल मन से परमात्मा को स्वयं को समर्पित कर दे तो बात बनते देर नहीं लगती। श्रीराम ने तो स्वयं कहा है कि मेरे लिए सबसे प्रिय वही भक्त है, जो छल-छिद्र और कपट से दूर है। भगवान भोले लोगों के लिए भोले होते हैं और चालाक लोगों के लिए भाले होते हैं। प्रेम से मांगने पर भगवान शिव ने रावण को सोने की लंका दी और दुष्टता करने पर उसका वध भी किया और उसकी सोने की लंका भी गई। इसलिए मनुष्य को चतुराई करनी चाहिए, लेकिन वह चतुराई लोकहित और जन कल्याण के लिए होनी चाहिए। 
जय गुरूजी. 

In English:

(Life and death is in the hands of God. Neither the right to choose their own organism birth nor death has the right to receive.lives, he could voluntarily choose to conceive, but other creatures can not do that. Only creatures can live, life does not claim any rights. If the time comes when death is not death, her hands divine. The creature itself that gives the motivation of his own conduct, their behaviour destroys lives. Wisdom is governed by conscience. Agonal of the organism is, his intellect becomes confused. He leaves the idea of ​​good and bad. Good conduct leaves. Faster than his body is destroyed. Strength wanes and the idea is no longer stable. She seems to conduct his own life becomes turbulent. Work, lust and anger, because his whole life is upside-down, As a result, his life enters into the cheek of time itself. Agonal gods to defeat Ravana came when he gave up the moral righteousness. His force was destroyed, the wisdom and thoughts faded and she was trapped in the clutches of time. There is a part of God's destruction. He never breaks someone's head with a stick, but the man himself it seems to work, he is prone to disorders. A man of pure heart, then God's likely to become devoted themselves. Shriram told themselves that the devotee is dear to me, which is far from cheating and fraud holes. God naive people are naïve and innocent people are clever. On demand from the love of God Shiva, Ravana Lanka and wickedness on gold and gold Lanka also visited the slaughter. Therefore man should tactfully, but he maneuvered for the public interest and welfare should be.)
Jai Guruji.

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