Tuesday, April 1, 2014

ज्ञान और विज्ञान

विज्ञान प्रयोगों और शोध-अध्ययनों पर आधारित है। विज्ञान कई प्रौद्योगिकी का जनक है, लेकिन प्रौद्योगिकी हो या इससे भी उच्च या उच्चतर तकनीक हो, सभी को स्थूल धरातल पर ज्ञान की सीढ़ियां भर कहा जा सकता है। जो लोग वैज्ञानिक सोच को सतही जानकारी तक सीमित समझते हैं, वे सच को आत्मिक विकास से संबद्ध नहीं कर पाते। इसे एक बड़ी भूल माना जाएगा। विज्ञान की दिशा है ज्ञान। वस्तुत: ज्ञान के बाद कोई विज्ञान नहीं रह जाता। विज्ञान का चरमोत्कर्ष ज्ञान है। इस ज्ञान को पाने के लिए वैज्ञानिक भी प्रयासरत हैं, जैसे कि प्राचीन काल में ऋषि-मुनि करते थे। यद्यपि उनकी तुलना अप्रासंगिक है। फिर भी उद्देश्य में भिन्नता होते हुए दिशा एक ही है। प्रश्न यह है कि आज विज्ञान कहां तक पहुंचा है, उसका सच क्या है। मानें या न मानें, लेकिन आधिभौतिक लब्धियां विज्ञान का सच नहीं है।1आत्मिक ज्ञान का प्रतिफल यानी आात्म तत्व ही विज्ञान का सच है। विज्ञान सही दिशा में बढ़ना चाहता है, गलत मार्ग उसका उद्देश्य नहीं है। प्राय: यह कहा जाता है कि विज्ञान भगवान को नहींमानता। यह बात बिल्कुल सच नहीं है। विज्ञान भगवान की खोज में लगा है। अनुसंधान व अन्वेषण करते-करते उसे एक ही ठिकाने पर पहुंचना है। यह ठिकाना भगवान के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। तो फिर ज्ञान और विज्ञान का लक्ष्य एक ही है।1 वस्तुत: विज्ञान तो ज्ञान का भौतिक पक्ष है। इस भौतिक पक्ष की स्थिरता आध्यात्मिक पक्ष के संबल से हो सकती है। यह निश्चित नियम है। आत्मा से शरीर चलता है, लेकिन शरीर से आत्मा (प्राणतत्व) संचालित नहीं होता। इसीलिए तो ज्ञान की देन है विज्ञान। यह भलीभांति समझना होगा कि विज्ञान केवल ज्ञान का रूपक है। विज्ञान का सच तो ज्ञान में ही निहित है। जब कोई अबोध बालक ज्ञान की ओर बढ़ता है तो विज्ञान उसके मार्ग में अनायास मिलता है। यह एक क्रम है, इसमें उलटफेर तो सांसारिक बाधा है। जिस प्रकार अक्षर ज्ञान, मात्र ज्ञान नहीं होता, उसी तरह विज्ञान मात्र भी ज्ञान नहीं होता। ये सब ज्ञान के मार्ग हैं, बस। हमें विज्ञान के सकारात्मक पक्षों की ओर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि इसी से हम ज्ञान की ओर बढ़ते हैं और अपने जीवन स्तर को ऊपर उठाने में सफल होते हैं।

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