अनुलोम का अर्थ होता है सीधा और विलोम का अर्थ है उल्टा। यहां पर सीधा का अर्थ है नासिका या नाक का दाहिना छिद्र और उल्टा का अर्थ है-नाक का बायां छिद्र। अर्थात अनुलोम - विलोम प्राणायाम में नाक के दाएं छिद्र से सांस खींचते हैं, तो बायीं नाक के छिद्र से सांस बाहर निकालते है। इसी तरह यदि नाक के बाएं छिद्र से सांस खींचते है, तो नाक के दाहिने छिद्र से सांस को बाहर निकालते है। अनुलोम - विलोम प्राणायाम को कुछ योगीगण 'नाड़ी शोधक प्राणायाम' भी कहते है। उनके अनुसार इसके नियमित अभ्यास से शरीर की समस्त नाड़ियों का शोधन होता है यानी वे स्वच्छ व निरोग बनी रहती है। इस प्राणायाम के अभ्यासी को वृद्धावस्था में भी गठिया, जोड़ों का दर्द व सूजन आदि शिकायतें नहीं होतीं।
विधि
- अपनी सुविधानुसार पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन अथवा सुखासन में बैठ जाएं। दाहिने हाथ के अंगूठे से नासिका के दाएं छिद्र को बंद कर लें और नासिका के बाएं छिद्र से 4 तक की गिनती में सांस को भरे और फिर बायीं नासिका को अंगूठे के बगल वाली दो अंगुलियों से बंद कर दें। तत्पश्चात दाहिनी नासिका से अंगूठे को हटा दें और दायीं नासिका से सांस को बाहर निकालें।
- अब दायीं नासिका से ही सांस को 4 की गिनती तक भरे और दायीं नाक को बंद करके बायीं नासिका खोलकर सांस को 8 की गिनती में बाहर निकालें।
- इस प्राणायाम को 5 से 15 मिनट तक कर सकते है।
लाभ
- फेफड़े शक्तिशाली होते है।
- सर्दी, जुकाम व दमा की शिकायतों से काफी हद तक बचाव होता है।
- हृदय बलवान होता है।
सावधानियां
- कमजोर और एनीमिया से पीड़ित रोगी इस प्राणायाम के दौरान सांस भरने और सांस निकालने (रेचक) की गिनती को क्रमश: चार-चार ही रखें। अर्थात चार गिनती में सांस का भरना तो चार गिनती में ही सांस को बाहर निकालना है।
- स्वस्थ रोगी धीरे-धीरे यथाशक्ति पूरक-रेचक की संख्या बढ़ा सकते है।
- कुछ लोग समयाभाव के कारण सांस भरने और सांस निकालने का अनुपात 1:2 नहीं रखते। वे बहुत तेजी से और जल्दी-जल्दी सांस भरते और निकालते है। इससे वातावरण में व्याप्त धूल, धुआं, जीवाणु और वायरस, सांस नली में पहुंचकर अनेक प्रकार के संक्रमण को पैदा कर सकते है।
- अनुलोम - विलोम प्राणायाम करते समय यदि नासिका के सामने आटे जैसी महीन वस्तु रख दी जाए, तो पूरक व रेचक करते समय वह न अंदर जाए और न अपने स्थान से उड़े। अर्थात सांस की गति इतनी सहज होनी चाहिए कि इस प्राणायाम को करते समय स्वयं को भी आवाज न सुनायी पड़े।
जय गुरूजी.
In English:
(Anulom means direct and inverse means opposite. Here is a direct means of nasal or nasal cavity and rewind means the right of the left nasal cavity. Ie morganatic - inverse pranayama breathing hole in the right side of the nose drag the left nasal cavity is exhaling. Similarly, if the left nasal cavity draw breath, then exhale the breath from the nose to the right hole. Morganatic - some Yogign inverse pranayama 'pulse purifier pranayama' is also known. According to him, all the nerves of the body from its regular practice is a refinement that they remain clean and healthy. The practitioner of pranayama in old age arthritis, joint pain and swelling are not complaints.
Method
- Lotus your convenience, siddhasan, Swstikasn or sit in the chair. Close the right nostril with the thumb of the right hand to make the hole in the left nasal cavity and in the count of 4 and then left nostril breath filled the two fingers next to the thumb off. Then remove the thumb from the right nostril and breathe through the right nostril Exclude.
- Now the right nostril breath to the count of 4 full and right nasal opening by closing the left nostril to the count of 8. Remove breath.
- 5 to 15 minutes to have this pranayama.
Benefit
- Lungs are powerful.
- Cold, and largely prevents asthma complaints.
- The heart is strong.
Precautions
- Weak and suffering from anemia during the pranayama breath and breathe out (laxative) counts respectively keep four. Ie four in number, fill the four counts of breath is breathing out.
- Healthy patient YadhaSakti gradually increase the number of supplementary laxative.
- Due to the breath and the breath taking some Smayabav the ratio 1: 2 do not. They breathe very fast and quickly and is out. It permeates the atmosphere of dust, smoke, bacteria and viruses, respiratory tract infections can lead to a variety arrived.
- Morganatic - inverse pranayama thin object like dough when placed in front of the nose, then go inside and supplements and laxative when he flew from his place. That this should be so comfortable paced breathing pranayama while the voice itself may not be heard.)
Jai Guruji.
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