Wednesday, December 21, 2016

दुनिया को खूबसूरत बनाना है तो खुद को जरूरतों तक सीमित रखें ..(If the world is to make beautiful Limit yourself needs...)



जब मनुष्य जन्म लेता है तो तो बड़ा होते-होते उस पर पांच प्रकार के ऋण आ जाते हैं। उनमें से एक ऋण राजा का होता है। आज के जमाने में राज्य का स्वरूप बदल गया है और अब राजा नहीं होता, उसकी जगह हमारी ही चुनी हुई सरकार ने ले ली है, इसलिए राजा का यह ऋण हम सरकार को ही टैक्स देकर चुकाते हैं। इसके बदले में सरकार हमें विभिन्न प्रकार के साधन मुहैया करवाती है ताकि हम अपना जीवन सुचारू रूप से चला सकें। इस्कॉन के संस्थापक श्री भक्ति वेदांत स्वामी महाराजजी बताते हैं कि हमें इन साधनों का उपयोग अपनी आवश्यकता के अनुसार करना चाहिए। यदि हम इनका जरूरत से ज्यादा उपयोग करते हैं तो यह पाप है। 

दुर्भाग्यवश प्रत्येक मनुष्य विजयी होने, अमीर होने, बड़ा होने का प्रयास कर रहा है। अनावश्यक धन-संपत्ति, जमीन इत्यादि पर अधिकार जताते हुए जब हम लड़ते हैं या गलत कार्य करते हैं तो जरा भी नहीं सोचते कि यह सब अंत में छोड़कर जाना होगा। और तो और, हम यह भी नहीं याद रखते कि हमारे अंदर बैठे परमात्मा सब कुछ देख रहे हैं। हमें यह भी समझना चाहिए कि यह सब हमारी नहीं बल्कि ईश्वर की संपत्ति है। 

अगर हम एक बोरा अनाज सड़क पर बिखेर दें तो कबूतर आकर उसमें से दो-चार दाने चुग कर चले जाएंगे। वे आवश्यकता से अधिक ग्रहण नहीं करेंगे। यदि हम सड़क के किनारे आटे के अनेक बोरे रखकर लोगों से कहें कि आओ और ले जाओ तो एक व्यक्ति दस-बीस बोरे लेकर जाएगा और दूसरा पंद्रह-बीस लेकर जाएगा। जिसमें जितना लूटने की सोच है, क्षमता है, वह उतना लेकर जाने की चेष्टा अवश्य करेगा। क्या इस प्रकार हो जाने से वितरण असमान नहीं होगा?

प्रत्येक वस्तु परमेश्वर की है और हम उतना ही ले सकते हैं जितने की आवश्यकता है। भगवान ने संसार की ऐसी व्यवस्था कर रखी है कि इसमें प्रत्येक वस्तु पर्याप्त है। हर कोई अगर अपनी जरूरत के मुताबिक ले तो किसी के लिए इन वस्तुओं की किल्लत नहीं होगी। लेकिन आज कोई भी खुद को अपनी जरूरतों तक सीमित रखने को तैयार नहीं। जिसे मौका मिलता है वही अपनी क्षमता के मुताबिक अधिक से अधिक बटोर लेने की कोशिश करता है। इसी वजह से आज यह स्थिति है कि किसी के पास आवश्यकता से अधिक पड़ा है तो कोई भूखों मर रहा है। 

वास्तव में ज्ञान के अभाव से ही हम कष्ट भोग रहे हैं। न्यायालय में अज्ञान के लिए कोई जगह नहीं होती। यदि किसी ने अवैधानिक रीति से प्रचुर संपत्ति एकत्रित कर ली है और नियम के उल्लंघन से अज्ञानता प्रकट करता है तो भी वह दंडनीय है। दुनियावी न्यायालय में इसे अपराध कहते हैं और इसका दंड निर्धारित है। इसी प्रकार सर्वोच्च अदालत अर्थात भगवान की दृष्टि में भी यह सही नहीं है।
जय गुरूजी. 

In English:

(By then the big man is born, he will come five types of loans. One loan is king. Today's world has turned and now the state is not the king, his place is taken by our own elected government, the king gave the debt we pay to the government as tax. In return, the government sends us so that we can provide a variety of means to your life run smoothly. The founder of ISKCON Sri Bhakti Vedanta Swami explains Maharajji according to your requirement, we must use these means. If we use them too much so it is sin.

Unfortunately, every human being victorious, being rich, is trying to grow. Unnecessary wealth, etc. authority over land when we fight or not at all wrong to think that all the work will be left in the end. What's more, we will not even remember that God is watching everything we're sitting inside. We must also understand that it is the property of God, not our.

If we dove under a sack of grain scattered on the road two or three grains of it shall be devoured. They will not receive more than necessary. By many sacks of flour we roadside ask the people come and get it in one take and one ten-twenty sacks will take fifteen or twenty. The looting of the thinking capacity, he will surely try to take as much. What follows will not be unequal distribution?

God is everything and we can take as much as is required. Lord of the world, has a system in which each object that is enough. Everyone take your demand then there will be no shortage of these commodities. But nobody is willing to be confined to their own needs. The same opportunity to our potential to elicit more tries. This is why today more than a requirement to have had no dying with hunger.

In fact, we were suffering from the lack of knowledge. There is no room for ignorance in court. If anyone has collected an enormous asset illegal manner and reveals ignorance of rule violations, even if he is punishable. Ecumenical court says the crime and its punishment is prescribed. Similarly, the Supreme Court that it is not right in God's sight.)
Jai Guruji.

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