Saturday, December 17, 2016

धर्म की धारणा ..(Perception of religion ..)


हमारे क्षणभंगुर जीवन में ‘धर्म’ का तात्पर्य धारण करने, धारणा बनाने से है। जीवन-मृत्यु, ईश्वर-नश्वर के बारे में चेतना से या सकारात्मक रहकर जो कुछ भी धारण किया जाएगा और जो वैचारिक धारणा बनेगी, वही ‘धर्म’ कहलाएगी। परंतु वर्तमान मानव जीवन ‘धर्म’ की नकारात्मक और प्रतियोगी वैचारिकी से ग्रस्त है। यदि किसी नकारात्मक और जीवन से निराश व्यक्ति को ‘धर्म’ के बारे में बताने लगें तो वह और ज्यादा नकारात्मकता ओढ़कर ‘धर्म’ और धार्मिक गतिविधियों को अपने कुतर्को से गलत सिद्ध करने का निर्थक प्रयास करता है। ऐसे लोगों को समझना होगा कि ‘धर्म’ के अंतर्गत उन्हें कभी भी किसी विशेष विचार को अपनाने के लिए नहीं कहा जाएगा, बल्कि उन्हें यह समझने की आवश्यकता है कि धर्म जीवन-जगत की प्राकृतिक धारणाओं को पूर्वाग्रह के बिना स्वीकार करने और उनके प्रति आभार प्रकट करने की पुण्य प्रवृत्ति है। यह इसलिए, क्योंकि हमारा जीवन हमारा अपना बनाया हुआ नहीं है। इसमें माध्यम तो हमारे माता-पिता बनते हैं, परंतु जिन पंचतत्वों के सम्मिश्रण से हमारे माता-पिता व हमारा जन्म होता है, उन्हें निर्मित, व्यवस्थित व संतुलित करने वाला तो कोई और ही है। इसीलिए जीवन में कुछ समय विचरण करने के बाद और अपने भौतिक ताने-बाने को खोकर हमारा आत्म-स्वरूप में जैसा या जो भी निरूपण होता है हमें उसके निर्धारक जगतपति ईश्वर के लिए शुभकामनाएं देनी चाहिए। हमें ‘धर्म’ के जगतव्यापी संस्कारों को अपनाना होगा। साथ ही स्वयं की सकारात्मक धार्मिक कल्पनाओं का विकास भी करना होगा। जब प्राकृतिक विधान, यम-नियम भी ‘धर्म’ से संचालित हैं, तब भी उसके प्रति निकृष्ट आचार-व्यवहार करने का नास्तिक अभ्यास यदि होता रहता है तो समझ लेना चाहिए कि नास्तिक लोगों का जीवन ही विकारग्रस्त है। इस तरह नास्तिक व्यक्ति अपने मूल्यवान मानवीय स्वरूप को कुतर्र्को और विवादों की कृत्रिम चादर ओढ़ाकर उसे व्यर्थ करने पर ही तुले हुए हैं, जबकि दूसरी ओर ‘धर्म’ नियोजित मानवीय जीवन निरंतर जीवन के सर्वश्रेष्ठ उद्देश्य की ओर बढ़ता रहता है। साधु-संत, गुरु-शिक्षक, माता-पिता आदि सभी भूमिकाओं में यदि मानव निर्धारित मर्यादाओं का पालन करता है, तो समङों कि वह ‘धर्म’ के ईश्वरीय आयाम से प्राणपण से जुड़ा हुआ है। 
जय गुरूजी. 
In English:

(Our fleeting lives Dharma means to hold, is making assumptions. Life and death, God-consciousness about mortal or whatever Staying positive will be holding the ideological assumptions which will form the 'religion' called. But the present human life of 'religion' suffers from negative and competitive ideology. If a negative and depressed person lives Dharma talk about it and start smiling more negativity 'religion' and its religious activities Kutrco Limerick attempts to prove wrong. Such people have to understand that 'religion' under them never will not be asked to adopt a particular idea, but they need to understand the natural notions of religious life, the universe and their gratitude to accept without prejudice have a tendency to appear virtuous. This is because we have not made our own life. These are formed through our parents, but a combination of the five elements which we are born, our parents and they built, and there is no systematic and balanced habits. So after some time in life to move and lose their physical fabric of our self-image as it is or whatever representations should give us his best wishes for God Jagatpati determinant. We 'religion' will adopt the Jagtwyapi sacraments. The need to develop a positive self-religious fantasies. When the laws of nature, Yama-laws 'faith' driven, even if it would mean to conduct practice remains agnostic to atheist must understand that when people's lives are perverse. Gentile Kutrrco such valuable human nature and her futile disputes Odhakr synthetic sheet are determined on the other hand, 'religion' conceived human life moves toward the objective of continued life best. Saints, gurus, teachers, parents, etc. All roles following the norms laid down in the human if he Smdon 'religion' is linked to the divine dimension fiercely.)
Jai Guruji.

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