दूसरे विश्वयुद्ध में हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए एटम बम से दो लाख लोग तत्क्षण मारे गए थे और दो लाख अन्य मानसिक और शारीरिक रूप से विकलांग हो गए थे। जिस व्यक्ति ने वह बम गिराया, उससे अगली सुबह पत्रकारों ने पूछा कि आपने एक सेकेंड में दो लाख लोगों को राख कर दिया, क्या आपको पश्चाताप नहीं होता? उसने कहा, ‘नहीं, मुझे तो कोई पछतावा नहीं है। बल्कि मैं तो गौरवान्वित हूं कि मैंने अपने अधिकारियों के आदेश का पूरी निष्ठा से पालन किया।’
अगर अनुशासनबद्धता और आज्ञाकारिता एक सीमा से बढ़ जाए तो इंसानियत खो जाती है। ऐसा व्यक्ति यंत्रवत हो जाता है और उसकी बुद्धि, विवेक, प्रज्ञा नष्ट हो जाते हैं। निश्चय ही, जीवन में कुछ नियम होने चाहिए क्योंकि हम सामाजिक प्राणी हैं। लेकिन अगर नियम बहुत गंभीर या भारी हो, तो बोझ बन जाता है। ऐसा नियम मन को जकड़कर व्यक्ति को पूर्वाग्रही बनाता है। पूर्वाग्रह से ग्रस्त व्यक्ति किसी काम का नहीं होता। इसलिए, अनुशासन उस सीमा तक ही स्वीकार्य हो सकता है जब तक तक व्यक्ति में बुद्धि-विवेक का विकास न हो जाए। जैसे ही व्यक्ति में प्रौढ़ता, परिपक्वता आने लगे, फिर उसके बाद अनुशासन और मर्यादाएं ऐसी ही होनी चाहिए जिन्हें आसानी से छोड़ा भी जा सके।
जर्मनी के लोग सबसे ज्यादा अनुशासित माने जाते हैं। एक बार किसी का नेतृत्व स्वीकार कर लें तो फिर उसके अंधभक्त हो जाते हैं। हिटलर इसी अनुशासनबद्धता और अंधभक्ति का परिणाम था। इसलिए, अनुशासन एक हद तक ही ठीक है। बेशक, नियम के इतर चलने से कुछ भूल-चूक की संभावना भी रहेगी। किंतु इसकी गुंजाइश ही न छोड़ी जाए तो कभी विकास ही न हो सकेगा। गलतियों में ही सीखने का अवसर होता है।
नियम नासमझ के लिए जरूरी हैं, लेकिन समझदार के लिए विवेक पर्याप्त है। समझदार को उसका विवेक ही भूल-चूक से बचाता है। अपरिपक्व के लिए मर्यादाएं आवश्यक हैं, किंतु प्रौढ़ के लिए उसके अपने अनुभव काफी होते हैं। ठीक ऐसे ही, जैसे नेत्रहीन के लिए तो लाठी चाहिए, मगर आंखों का इलाज हो चुकने के बाद उसकी जरूरत नहीं रह जाती।
जहां व्यक्ति नियमों का अंधानुकरण नहीं करता, वहां थोड़ी अराजकता जरूर दिखेगी, मगर कुछ हद तक यह अराजकता, अनुशासनहीनता भी स्वागत योग्य है। नियमबद्धता धीरे-धीरे व्यक्ति को इतना कृत्रिम बना देती है कि उसके भीतर विचार की प्रक्रिया ही समाप्त हो जाती है। इसलिए, जहां स्थापित नियमों के साथ थोड़ी छूट लेने की इजाजत होती है, उसी समाज में नियम और उत्सव- दोनों साथ-साथ चलते हैं। पक्ष-विपक्ष दोनों में उठने वाली आवाजों के प्रति सम्मान होना चाहिए।
जय गुरूजी.
In English:
(Atom bombs dropped on Hiroshima and Nagasaki in World War II, two million people were killed instantly and another two million were mentally and physically disabled. The person who dropped the bomb, journalists asked him the next morning that the ashes you made the second of two million people, you would not repent / she said, 'No, I have no regrets. But I am proud that I diligently followed the orders of their officers. "
If the threshold is increased and obedience Discipline commitment humanity is lost. Such a person becomes mechanistic and his wisdom, prudence, wisdom are destroyed. Of course, there should be some rules in life because we are social animals. But if the rules become too serious or heavy, it becomes a burden. This rule makes the mind bound prejudiced person. Biased person is of no use. Therefore, to the extent that discipline may be acceptable as long as the person has not developed the intellectual conscience. As the person in adulthood, maturity came, then discipline and decorum should be similar to the ones done away with.
People in Germany are considered to be the most disciplined. Accept a lead once again become the blind faith. This was the result of Hitler Discipline commitment and fetishism. Therefore, the right to a degree of discipline. Of course, other rules will likely run some omissions. But its scope can not be made only if it is development. Have the opportunity to learn the same mistakes.
To mindless rules are necessary, but smart enough discretion. His conscience prevents sensible mistake. Limitations are necessary for immature, but mature enough to have her own experience. OK is as visually should staves, but his eyes no longer needed after completion of the treatment.
Where the person does not blindly rule, the course will look a little chaos, but to some extent this chaos, indiscipline is also welcome. Red tapery gradually make artificial person so that only her inner thought process ends. So, where is allowed to take some liberties with the established rules, the rules in society and festival go together. Both pros and cons must be respect for the rising voices.)
Jai Guruji.
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