जैसी मनुष्य की सोच होती है, वैसा ही उसका व्यक्तित्व होता है। तभी तो कामना की गई है कि मेरा मन शुभ संकल्प वाला हो। मन संकल्प और विकल्प से परिपूर्ण है। उसमें परस्पर विरोधी भाव उत्पन्न होते रहते हैं। मन में अच्छे विचार आते हैं, तो बुरे विचार भी आते हैं। बुरे विचार आते हैं, तो उसमें विरोधी विचार यानी अच्छे विचार भी अवश्य उत्पन्न होते हैं। मन में उठने वाले विचारों पर नियंत्रण कर हम जीवन को मनचाहा आकार दे सकते हैं। जैसा भाव या विचार वैसा ही जीवन। अच्छे विचारों का चयन कर जीवन को उन्नत और बुरे विचारों का चयन कर जीवन को अवनत किया जा सकता है। प्राय: कहा जाता है कि पुरुषार्थ से ही कार्य सिद्ध होते हैं। मन की इच्छा से नहीं। बिल्कुल ठीक बात है, लेकिन मनुष्य पुरुषार्थ कब करता है और किसे कहते हैं पुरुषार्थ? पहली बात तो यह है कि इच्छा के बगैर पुरुषार्थ भी असंभव है। मनुष्य में पुरुषार्थ करने की इच्छा भी किसी न किसी भाव से ही उत्पन्न होती है और भाव मन द्वारा उत्पन्न और संचालित होते हैं। इसलिए सकारात्मक विचार ही पुरुषार्थ को संभव बनाता है। पुरुषार्थ के लिए उत्प्रेरक तत्व मन ही है। कई व्यक्ति तथाकथित पुरुषार्थ तो करते हैं, फिर भी सफलता से कोसों दूर रहते हैं। लक्ष्य-प्राप्ति पुरुषार्थ पर नहीं मन की इच्छा पर निर्भर है। कालिदास कहते हैं कि मनोरथ के लिए कुछ भी अगम्य नहीं है। इच्छाएं ही हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं। सफलता प्रदान करने में सकारात्मक इच्छाएं कारगर साबित होती हैं। वस्तुत: जैसी आपकी इच्छाएं होंगी वैसा परिणाम। कल्पवृक्ष मनचाही वस्तु ही नहीं देता, बल्कि आनंद का अनुपम स्रोत भी है हमारा मन। आनंद भी मन का एक भाव है। भौतिक सुख-सुविधाओं में आनंद नहीं है, यदि मन प्रसन्न नहीं। मन के प्रसन्न होने पर आर्थिक समृद्धि या भौतिक सुख-सुविधाओं में कमी होने पर भी आनंद ही आनंद है। सुख-समृद्धि और आनंद दोनों ही प्राप्त करने के लिए मन की उचित दशा या इसकी सकारात्मक भावधारा का निर्माण करना अनिवार्य है। जिस दिन मन को नियंत्रित कर उसे सकारात्मकता प्रदान करना सीख जाएंगे, पारस पत्थर हाथ में आ जाएगा। कल्पवृक्ष बनते देर नहीं लगेगी। मनोविज्ञान के अनुसार जो व्यक्ति जैसा सोचता है, वैसा ही उसके व्यक्तित्व का निर्माण होता है। फिर देर किस बात की सकारात्मक सोच को मन में प्रश्रय देकर जीवन में आगे बढ़ें, आपको कामयाबी नसीब होगी।
जय गुरूजी.
In English:
(Would think like humans, so is his personality. That's why I feel like that was going to be a good resolution. The mind is full of determination and choice. The conflicting expressions arise. Good ideas come to mind, the bad thoughts come. Come evil thoughts, it must also opposing the idea that good ideas are generated. To control the thoughts that come to mind we can give life to the desired size. Like similar expressions or thoughts of life. Select good ideas and bad ideas advanced life choose life can be demoted. Often it is said that the efforts that are proven to work. Not by the will of the mind. That's perfectly fine, but when human effort and effort, what is? First, the desire is impossible without efforts. Efforts in the human desire to arise from some expressions and expressions occurring and are governed by the mind. Efforts therefore enables positive thoughts. Honor the catalyst element is mind. So many people have so-called honor, yet are far from success. Efforts at achieving that goal is not dependent on the will of the mind. Kalidasa says that desire is nothing inaccessible. Desires that motivate us to move forward. Success has proven effective in providing positive desires. In fact, as you will desire the same outcome. Kalpvriksha not only gives the desired object, but we wanted to enjoy the unique source. Enjoy a sense of mind. I do not enjoy material well-being, if you do not feel happy. When the mind delights in economic prosperity or lack of material well-being enjoyed own enjoyment. Both well-being and pleasure to receive proper state of mind or it is essential to build positive Bavdhara. Controlling the mind and learn to provide positive, the Philosopher's Stone will come in hand. Kalpvriksha made will not take long. According to psychology as a person thinks, so is his personality. Why the delay in life by encouraging positive thinking in mind, go ahead, you will be destined to succeed.)
Jai Guruji.
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