Tuesday, July 5, 2016

त्याग ..(Sacrifice ..)


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किसी भी रिश्ते में त्याग की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, क्योंकि त्याग की भावना में नफरत, प्रतिस्पर्धा, एकाधिकार, नियंत्रण जैसी तमाम नकारात्मक बातें नष्ट हो जाती हैं। इसके बाद जो रह जाता है तो वह है सिर्फ प्रेम। प्यार में त्याग की भावना अमृत के समान है, जो हमें मुश्किल समय में भी नया जीवन देता है। तब हमारे पास थोड़ा होते हुए भी हमें परिपूर्णता का अहसास होता है। असल में, जब हम सच्ची भावना से त्याग करते हैं, तब हमें कुछ खोने का नहीं, बल्कि पाने का अहसास होता है। ऐसी स्थिति में सामने वाले के मन में हमारे लिए सम्मानजनक स्थान बनना है। त्याग की भावना जितनी प्रबल होगी, प्रेम उतना ही गहरा होता जाता है और जिस रिश्ते में प्रेम होगा, वहां कलह की कोई गुंजाइश नहीं होती, बल्कि एक-दूसरे के लिए सम्मान होगा। तब दोनों ओर भरोसे की भावना अपने चरम पर पहुंच जाती है। संत कबीरदास से एक व्यक्ति ने पूछा, कृपया यह बताएं कि मुङो गृहस्थ बनना चाहिए या संन्यासी? कबीरदास बोले, जो भी बनो आदर्श बनो। तब दोपहर का समय था। कबीर ने अपनी पत्नी को बुलाकर कहा, दीपक जलाकर दो, मुङो कपड़े बुनने हैं। पत्नी ने तर्क किए बगैर दीपक जला दिया। कबीर ने उस व्यक्ति से कहा, गृहस्थ बनना है तो आपस में ऐसा विश्वास बनाना कि दूसरे की इच्छा ही अपनी इच्छा हो। इसके बाद उस व्यक्ति को कबीर एक पहाड़ी पर ले गए, जहां एक बुजुर्ग संत रहते थे। कबीर ने संत से पूछा, बाबा आपकी आयु कितनी है? बाबा ने कहा कि 80 साल। कबीर ने फिर से पूछा, बाबा आयु बताइए? उन्होंने फिर से कहा, 80 साल।  थोड़ी-थोड़ी देर में कबीर उनसे उनकी उम्र पूछते रहे और वह धैर्य के साथ उत्तर देते रहे। कुछ समय बाद कबीर और व्यक्ति पहाड़ी से उतर आए। नीचे पहुंचकर कबीर ने आवाज लगाई, बाबा नीचे आ सकते हैं, कुछ पूछना रह गया था। बाबा नीचे उतरकर आए। कबीर ने कहा, आपकी आयु एक बार और पूछनी थी। बाबा ने कहा, 80 साल और वापस चले गए। यह नजारा देखकर वह व्यक्ति दंग रह गया और पूछने लगा कि वृद्ध संत को बेवजह पहाड़ी से उतारकर फिजूल का सवाल क्यों? कबीर बोले, यदि संत बनना हो तो इसी तरह धैर्यवान और क्षमाशील बनना। यह महत्वपूर्ण नहीं है कि हम जीवन में क्या-क्या बनना चाहते हैं, बल्कि जरूरी यह है कि हम उसके लिए क्या-क्या त्याग करना चाहते हैं। 
जय गुरूजी. 

In English:

(Sacrificing an important role in any relationship, because in the spirit of sacrifice hatred, competition, monopoly, controls are deleted as all negative things. The rest is left just love it. Self-sacrificing love is like nectar, which gives us new life even in difficult times. Then we have a little, yet we have a feeling of fullness. Actually, true feelings when we make sacrifices, we sometimes lose, but he feels to. In such a situation for us in front of the mind is to be respectable. The spirit of sacrifice will prevail, and that love is as deep love relationship would, there is no room for discord, but will respect each other. Then a sense of trust on both sides reaches its peak. Saint Kabir One person asked, please indicate Turn householder should become Saints? Kabir said: Be perfect Be whatever. Then it was time for lunch. Kabir called his wife, two lighting lamps, Turn the fabric weaving. Wife lamp burned without argument. Kabir said the person, the householder has to be to make sure that the will of another, such as your desire. Kabir then that person took on a hill where an elderly saint lived. Saint Kabir asked Baba What is your age? Baba said that 80 years. Kabir asked again, tell Baba age? He said again, 80 years. 1 intermissive Kabir asked him his age and he kept answering with patience. Kabir and the person came down from the mountain after a while. Kabir came down, shouted, Baba can come down, was left to ask. Baba came down below. Kabir said, and want to ask your age once. Baba said, and went back 80 years. He was stunned by the sight and asked the elderly sage needlessly wasteful hill off the question of why? Kabir said, the Saints have become so similar to be patient and forgiving. It is not important what we want to be in life, but is it necessary to sacrifice what we want for him.)
Jai Guruji

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