Sunday, July 24, 2016

दया और करुणा से ही होगी समाज में गरीबों की भलाई ..(Mercy and compassion will Benefit of the poor in society ..)


Image result for spirituality

किसी ने बिलकुल सही कहा है कि दवा और दुआ के बगैर व्यक्ति बीमारी से ठीक नहीं हो सकता। ठीक उसी प्रकार दया और करुणा के बिना समाज में गरीबों की भलाई कोई नहीं कर सकता। इसलिए दया का हम इंसानों में होना अत्यंत आवश्यक है। जब हम किसी लाचार, गरीब, बीमार, निर्धन, रोगी, दुखी और बेसहारा पर दया करते हैं तो उसका भला करते हैं। दया करने से हमें सुख की अनुभूति होती है तो ग्रहण करने वाले को जीवन मिलता है। इस सुखद अहसास को हम प्रेम, करुणा, क्षमा और ईश्वरीय कृपा कहते हैं। दया दुआ का भी काम करती है क्योंकि इसके अभाव में मनुष्य ईश्वर से दूर हो जाता है। जब मनुष्य ईश्वर से दूर होता है तो वह समाज में रहने वाले हर उस प्राणी से दूर हो जाता है जिसके साथ उसे जुड़ा रहना चाहिए। जुड़े रहने से संबंधों में मिठास आती है। 

कैथोलिक धर्म समाज के धर्म गुरु संत पापा फ्रांसिस ने 8 दिसम्बर 2015 से 20 नवम्बर 2016 को विश्वभर में ‘दया का वर्ष’ के रूप में मनाने का आह्वान किया है। उन्होंने लोगों से दया के कार्यों को करने को कहा है। संत पापा फ्रांसिस ने दया का वर्ष शुरू करते हुए कहा था, ‘विश्वास तभी परिपूर्णता पाता है जब हमारे रोजमर्रा के कार्य हमारे पड़ोसियों को शारीरिक और आध्यात्मिक तौर पे मदद करते हों’। दया के वर्ष के दौरान दया के शारीरिक और आध्यात्मिक कार्यों पर अधिक बल दिया जा रहा है। दया के शारीरिक कार्य भूखों को खिलाना, प्यासों को पिलाना, वस्त्रहीनों को पहनाना, बेघरों को आश्रय देना, रोगियों से भेंट करना, कैदियों से मिलना एवं मृतकों को दफनाना हैं। दया के आध्यात्मिक कार्य में भ्रमितों का मार्गदर्शन करना, अज्ञानियों को शिक्षा देना, पापियों को सचेत करना, पीड़ितों को दिलासा देना, सतावट को धैर्य से सहना, अपराधियों को क्षमा करना एवं मृतकों व जीवितों के लिए प्रार्थना करना है।

वैसे तो हम सभी ये कार्य शायद आये दिन करते हों मगर इन कार्यों को अगर हम दया व करुणा की भावना से नहीं करते हैं तो हमें अच्छे फल नहीं मिलते हैं। इन भले कार्यों को करने के लिए अपने मन और आत्मा को साफ सुथरा रखना आवश्यक है। सुखी होने के बजाय हम लोग ऐसा न हो कि दुःखी हो जायें। तो क्यों न हम दया के पथ पर आगे बढ़ें। 

पवित्र बाइबिल में संत लूकस के सुसमाचार के अध्याय 6:36 में लिखा है, ‘अपने स्वर्गिक पिता जैसे दयालु बनो। 
दोष न लगाओ, किसी के विरुद्ध निर्णय न दो, क्षमा करो और दूसरों को खुशी से दो क्योंकि तुम्हारे लिए भी उसी नाप से दिया जायेगा।’ परंतु हमें डर के कारण और स्वर्गिक लाभ उठाने के लिए दया दिखाने की जरूरत नहीं है। दया करनी ही है तो उदार दिल से करनी होगी।
जय गुरूजी. 
In English:

(Someone has rightly said that the drug and the person with the disease can not be cured without prayer. Just as kindness and compassion can not be without the benefit of the poor in society. Therefore it is very important for him to be in humans. When we are helpless, poor, sick, poor, sick, miserable and destitute have mercy on his good will. The pleasure has given us so vulnerable is the life. The nice touch we love, compassion, forgiveness and grace says. Also works of mercy, pray God, because its absence is off. When he is away from God, living in a society that is far from being connected with which it should be. The sweetness comes from staying connected relationship.

Pope Francis Catholic community religious leaders worldwide on December 8, 2015 to November 20, 2016 "the year of grace" as called for celebration. He asked people to works of mercy. Pope Francis said in the beginning year of kindness, faith "finds fulfillment only when our daily work on our neighbors that help physically and spiritually." During the year of grace of mercy is greater emphasis on the physical and spiritual functions. The physical act of mercy to feed the hungry, given to Pyason, Vstrhinon up to, give shelter to the homeless, to meet patients, prisoners are to meet and bury the dead. Of confusion in the spiritual work of mercy to guide, to teach the ignorant, to warn sinners, consoling the victims, Satavt endure patiently, forgive the perpetrators and to pray for the dead and the living.

To perform these good works are required to clean your mind and soul. So why do not we proceed on the path of compassion.

6:36 in the Holy Bible in the chapter of the Gospel of Saint Luke it is written, "Be merciful as your heavenly Father.

Come not to blame, not a decision against two, two of forgiveness and joy to others because you will be the same size. "But because we fear and do not need to show compassion for heavenly benefit. Will have to have to be so generous.)
Jai Guruji.


No comments: