Monday, April 13, 2015

परमात्म तत्व ..(Divine element ..)

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परमात्मा का अर्थ है -दिव्य प्रकाश और आत्मा उसी का एक प्रतिबिंब है। इसीलिए पदार्थ को समझने वाले आत्मा की बात नहीं समझते। पदार्थवादी केवल पदार्थ को ही पहचानते हैं। दूसरी ओर आत्मा या आत्म-तत्व पदार्थ को नहीं पहचानता। ऐसा इसलिए, क्योंकि पदार्थ और आत्मा में कोई मेल ही नहीं है। इसीलिए पदार्थवादी लोग आत्मा के अस्तित्व को नहीं स्वीकारते, लेकिन जो लोग आध्यात्मिक दृष्टि रखते हैं, वे लोग जानते हैं कि पदार्थ का मूल रूप ऊर्जा से अधिक और कुछ नहीं है। दुनिया की प्रत्येक वस्तु ऊर्जा है, इसलिए वे लोग प्रत्येक वस्तु को पदार्थ मानते हैं, ऐसे व्यक्ति आत्मा के अर्थ को नहीं समझते। आज प्रत्येक व्यक्ति दूसरे से परिचित तो है, लेकिन स्वयं से परिचित नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं से परिचित कराने का प्रयास किया जा रहा है।  आज मनुष्य जितना दुखी है, उतना पहले कभी नहीं था। इसका एक ही कारण है, आत्म-विस्मरण। आज प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को छोड़कर सब कुछ जानता है। यही उसकी अशांति का कारण है। जिस दिन मनुष्य स्वयं को जान लेगा, अपने होने का अर्थ समझ लेगा, उस दिन वह सुखी हो जाएगा। आखिर दुख का कारण भी तो यही है। जहां सुख मिलता है, वहां से हम पलायन कर जाते हैं। ठीक उसी प्रकार जैसे प्यास लगी हो, तो नदी किनारे न जाएं और मरुभूमि में जाकर पानी खोजें, क्योंकि सुख बाहर नहीं मिलता। सुख तो अंदर निहित है, लेकिन इसके लिए आपको अपने भटकाव को रोकना पड़ेगा। जब आप बाहर दौड़ना बंद कर देंगे तो स्वत: अंदर की ओर मुड़ जाएंगे। अंदर पहुंचते ही आपको परम सुख की प्राप्ति हो जाएगी। इसीलिए हमारे संतों ने इस सुख को आत्मानंद कहा है और यही आत्मानंद परमानंद बन जाता है। मनुष्य जो कुछ भी करता है वह केवल सुख प्राप्त करने के लिए है। वह जो भी कार्य व व्यापार करता है, उसका एक ही उद्देश्य होता है कि वह अधिक से अधिक सुख प्राप्त करे और इस सुख के लिए वह अपना सब कुछ गंवा देता है। अगर मनुष्य के जीवन में सुख प्राप्त करना ही लक्ष्य है, तो उसे वह सुख बाहर कहीं नहीं ले जाता। उसे अंतमरुखी बनना पड़ेगा। आज प्रत्येक व्यक्ति सुख की खोज में गलत दिशा में दौड़ रहा है, उसे दृष्टि दोष है कि सुख, धन-संपत्ति या वस्तुओं के संग्रह में है, क्योंकि आज तक किसी को भी वस्तुओं के संग्रह से सुख नहीं मिला।
जय गुरुजी. 

In English:


(Diwy Means divine light and is a reflection of the soul. So do not understand the spirit of understanding substance. Materialists recognize the substance itself. On the other hand, the soul or the self-elements does not matter. That's because it is not matched in substance and spirit. So materialistic people do not agree to the existence of the soul, but those who are spiritually, they know that the substance is basically nothing more than energy. Each object is the energy of the world, so they consider each object material, such person does not understand the meaning of soul. Today everyone is so familiar with each other, but by itself is not familiar. Everyone is trying to make themselves familiar with. The man is sad today, as never before. This is the same reason, the self-forgetfulness. Today everyone knows everything except himself. That is the cause of his misery. The day will know the man himself, will understand the meaning of his being, that day will be happy. After all, that's the cause of suffering. Where is happiness, and from there to flee. Just as thirsty, so do not go along the river and find water in the desert, go, do not get out as well. Happiness lies inside, but it will prevent your departure. When you stop running out automatically be turned inwards. Will arrive in the realization of the ultimate happiness. Therefore, our sages have said that the pleasure *atmanand *parmanand becomes ecstasy. Man does whatever he has to get the pleasure. He also does work and business, it has one purpose and that is to get the maximum comfort for the pleasure he loses everything. If human life to achieve happiness is the goal, then it takes the pleasure out of nowhere. He will be Antmruki. Today everyone is running in the wrong direction in the search for happiness, the happiness her fault, wealth or collection of objects, because no one else had the pleasure of collecting.)
Jai Guruji.

*atmanand - Self pleasure
*parmanand - Ultimate pleasure

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