Thursday, April 23, 2015

भक्ति और श्रद्धा ..(Devotion and faith ..)


Image result for spiritualityभक्ति और श्रद्धा में बड़ा मामूली अंतर है। कभी -कभी तो यह लगता है कि दोनों आपस में दूध -पानी की तरह इस प्रकार घुल गए हैं कि उन्हें अलग से पहचानना कठिन है। कहते हैं श्रद्धा श्रेष्ठ के प्रति होती है और भक्ति आराध्य के प्रति, किंतु देखा जाए तो दोनों में अति सूक्ष्म अंतर होते हुए भी अर्थ और भाव की दृष्टि से काफी असमानता है। गुरु के प्रति किसी की श्रद्धा भी रहती है और भक्ति भी, लेकिन आराध्य के प्रति व्यक्ति की मात्र भक्ति ही रहती है। श्रद्धा अनुशासन में बंधी है तो भक्ति दृढ़ता और अनन्यता के साथ न्योछावर करती रहती है अपने को। श्रद्धा में आदर की सरिता बहती है, तो भक्ति में प्रेम का समुद्र लहराता रहता है। दोनों में यही मूल फर्क समझ में आता है।  श्रद्धा स्थिर होती है और भक्ति मचलती रहती है। विनय दोनों में है, किंतु श्रद्धा का भाव तर्क-वितर्क के ताने-बाने बुनता रहता है, तो भक्ति अपने आराध्य के प्रति पूर्ण समर्पित होकर उसके भाव आदि की समीक्षा न करके, उस पर खुद को उड़ेलती रहती है। शास्त्र कहते भी हैं कि भगवान भाव के भूखे होते हैं। दरअसल जिस प्रकार बादल के साथ पानी की बूंदे जुड़ी रहती हैं, उसी तरह से भक्ति भी श्रद्धा का एक रूप ही है। बाहर से देखने पर बादल की तरह और छू देने पर बूंदें गिरने लगें। यहां भक्ति का पलड़ा केवल इसलिए भारी है कि इसके साथ प्रेम भी जुड़ा है। प्रेम संसार का ऐसा तत्व है जिसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती। इसी प्रेम की पुकार पर भगवान प्रकट होते हैं और मनुष्यावतार के द्वारा धर्म, पृथ्वी, गौ और जन-जन के कष्टों का निवारण करते हैं। यह प्रेम भक्ति का ही एक रूप है। भक्ति की लता प्रेम की डोर पर चढ़ कर ही अपने आराध्य तक पहुंचती है। प्रेम की यह डोर भक्त को भक्ति की पराकाष्ठा तक पहुंचा देती है। श्रद्धा यहां पर मात्र भक्ति को पुष्ट करने का काम करती है इसीलिए कहा गया है कि श्रद्धा और भक्ति एक-दूसरे की पूरक हैं। शरीर और आत्मा की भांति एक दूसरे से जुड़ी हुईं। यहां पर एक बात का ध्यान रखना है कि अंधश्रद्धा या अंध भक्ति दोनों ही व्यक्ति के लिए घातक हैं। व्यक्ति किसी के प्रति चाहे श्रद्धा रखे या भक्ति सबमें समीक्षा और मीमांसा होनी चाहिए। यानी देख-सुनकर ही केवल किसी पर अपनी श्रद्धा-भक्ति स्थिर नहीं करनी चाहिए, बल्कि उसकी भली-भांति परीक्षा करके ही अपने भाव प्रकट करने चाहिए। यही श्रद्धा-भक्ति फलदायी होती है।
जय गुरुजी. 

In English:

(Big slight difference in devotion and reverence. Sometimes it seems that both spouses have been mixed thus like milk - water that is difficult to identify them separately. Best is to say, faith and devotion to the deity, but in truth, the nuance, while both the meaning and the sense of sight is considerable disparity. Holds a master's faith and devotion but also to the adorable person remains mere devotion. If discipline is bound in faith with devotion, perseverance and sacrifice keeps its exclusivity. Reverence flows in the river of honor, devotion remains a billowing sea of ​​love. The basic difference between the two makes sense. Reverence and devotion lumbering is stable. Modestly in both, but the fabric of reasoning creates a sense of trust remains committed to the devotion of your adorable and review of its expressions, rather, it is itself Udelti. Scripture says that God also expressions are hungry. Indeed, as the water drops are connected with the cloud, the same way is a form of devotion, even reverence. Clouds giving way to see out and touching drops start falling. The balance of devotion is only so large that it is also associated with love. Love is this element of the world can not be compared to anyone. The same love and the call of God are manifested by Mnushyawatar religion, earth, cow to redress the grievances of the masses. It is a form of devotion. Loving devotion door by climbing vine reaches its adorable. Love is the bond devotee devotion reached its zenith. The mere devotion to faith and therefore serves to substantiate that the reverence and devotion are complementary to each other. Were attached to each other like body and soul. It is one thing to take note of that fetish or dangerous for both the blind devotion. Any person regardless of faith or devotion to all the review and consideration must be placed. Watch and hear the constant devotion not only a must-your faith, but only after his well-examination should express feelings. That faith-devotion is fruitful.)
Jai Guruji.

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