Friday, May 13, 2016

जीने की कला ..(Art of living ..)


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यूं ही जीना और मकसद के साथ सुखपूर्वक जीने में एक खास अंतर है। जो व्यक्ति इस अंतर को जानता है, उसका जन्म लेना सफल हो जाता है। सुखपूर्वक जीने का तरीका क्या हो सकता है? इस पर एक राय नहीं हो सकती है। दुनिया की सबसे पुरानी और ज्ञान की पुस्तक ऋग्वेद में इंसान के सुखपूर्वक जीने के जो तरीके बताए गए हैं, वे बहुत ही दिलचस्प हैं। सुख का कोई मापदंड तो है ही नहीं। इसलिए कौन कितना सुखी है, कह पाना मुश्किल है। ऐश्वर्य को विचार पूर्वक भोगने का सुख, स्त्री सुख, ज्ञान का सुख और सम्मान के सुख में कौन-सा सुख बड़ा और कौन-सा छोटा है, यह बता पाना मुश्किल है। चार्वाक जब तक जियो सुख से जियो और ऋण लेकर भी घी पियो को ही सुखपूर्वक जीना मानते हैं।  जर्मन दार्शनिक नीत्शे के मुताबिक वही कार्य ज्यादा उपयोगी है जिससे अधिक से अधिक लोगों को ज्यादा से ज्यादा सुख मिले। इस तरह कहा जा सकता है कि सुख हासिल करना भी एक हुनर है। जिंदगी जीने की कला में जो जितना माहिर होगा वह उतना ही सुखी होगा। दरअसल जिंदगी क्या, क्यों और किसलिए है? जब तक इसको पूरी तरह नहीं समझ लेते, सुखपूर्वक नहीं जी सकते हैं। यह शाश्वत सत्य है कि सुख हर प्राणी चाहता है और सुखी होना जिंदगी का एक बड़ा मकसद हो सकता है, लेकिन अपने सुख के लिए दूसरे के सुख को बाधित न करें, इस पर जरूर गौर करना चाहिए। शास्त्रों में सुख और आनंद में अंतर किया गया है। सुख क्षणिक होता है और आनंद शाश्वत होता है। सुख भौतिक भोग से हासिल होता है और आनंद परम चेतना में घुल जाने के बाद मिलता है। इसलिए तपस्वी क्षणिक सुख के बजाय शाश्वत आनंद को हासिल करने को प्राथमिकता देते हैं। शाश्वत सुख के लिए भोग के बजाय योग का सहारा लेना पड़ेगा। भोग के साथ योग का कैसे संतुलन बने, इस पर गौर करके शाश्वत सुख का प्रवाह बनाया जा सकता है। रोजमर्रा की जिंदगी में यदि आप 23 घंटे सामाजिक, आर्थिक और शारीरिक तंदुरुस्ती के लिए कार्य करते हैं तो एक घंटे प्रभु भक्ति में लगा कर परम आनंद का अनुभव कर सकते हैं। यह जिंदगी जीने का एक उम्दा तरीका है। इसे जिंदगी जीने की कला कहा जा सकता है। संस्कृत के एक श्लोक में कहा गया है कि जो इंसान कला से विहीन है वह पशु के समान होता है।
जय गुरूजी. 

In English:

(Fuckin live and live happily with the lead is a significant difference. The person who knows the difference, it is able to be born. What could be a way to live happily? This may not have an opinion on. The world's oldest book of wisdom Veda ways in which humans live happily, they are very interesting. Happiness is not a criteria. So who is so happy, is difficult to predict. Carefully consider the pleasure to enjoy the majesty of the female pleasure, the pleasure and the honour and pleasure of knowing what happiness which big and small, it is difficult to spot. Live and live happily until Charvaka taking loans also live happily admits only to drink ghee. German philosopher Nietzsche said that the task is much more useful to more people more happiness. This can be said to achieve that happiness is a skill. She specializes in the art of living life as much as would be equally happy. Indeed life, why and what is that? As long as it is not fully understood, can not live happily. It is true that the eternal happiness of the life of every creature wants to be happy and be a major cause, but do not disrupt each other for your own pleasure, it must notify. Scriptures have been the difference in pleasure and joy. Happiness is transient and eternal bliss. Happiness comes from physical enjoyment and pleasure is the ultimate consciousness dissolve. So rather than momentary pleasure ascetic prefer to achieve eternal bliss. Yoga for the enjoyment of eternal happiness will have to resort instead. How to balance the continued enjoyment of yoga, this can be made by looking at the flow of eternal happiness. If you have 23 hours in everyday life, social, economic and physical well being in devotion to the work of the Lord took an hour can enjoy the ultimate experience. It's a great way to live life. It can be called the art of living. Sanskrit verse states that a person who is devoid of art is similar to the animal.)
Jai Guruji.

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