Wednesday, April 29, 2015

सच्चा पुरुष ..(True Men )


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जय गुरुजी. मनुष्य एक ऐसा प्राणी है, जिसे समाज में रहने के लिए एक ऐसा व्यवहार-बनाना पड़ता है, जिससे उसका जीवन कठिनाई के बगैर अपने परिजनों, प्रियजनों और मित्रों-संबंधियों के साथ ठीक ढंग से संचालित हो सके। पशु का ऐसा कोई परिवार नहीं होता और वह अपनी प्राकृतिक प्रवृत्ति के वशीभूत होकर ही सभी कर्म करता है। किसी नैतिक और अनैतिक व्यवहार का उसके साथ कोई झंझट भी नहीं होता है। मनुष्य के साथ यह अनिवार्यता है कि वह विवश होकर व्यवहार करता है और इसके बिना उसका एक कदम भी चलना संभव नहीं होता। मनुष्य का व्यवहार कैसा हो और दूसरे के साथ व्यवहार में कैसा आचरण करे, इस सवाल के उत्तर में सामान्यत: यही कहा जाता है कि जो जैसा व्यवहार करे, उसके साथ दूसरे व्यक्ति को वैसा ही व्यवहार करना चाहिए, किंतु यह एक सामान्य नियम है और इसका पालन करके कोई भी व्यक्ति विशिष्ट नहीं बन सकता।  सामान्य से विशिष्ट बनने की इच्छा सभी की होती है और सभी किसी न किसी तरह विशिष्ट बनने के लिए प्रयत्न भी करते रहते हैं। इसी भावना को ध्यान में रखकर ही श्रेष्ठ मनुष्य से विशेष व्यवहार करने की अपेक्षा की गई है और इस अपेक्षा को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन में देखा गया है। कैकेयी ने अपने बेटे भरत के लिए अयोध्या के सम्राट पद पर अधिकृत होने के बाद श्रीराम को 14 वर्ष का बनवास देने का वचन मांगा था, किंतु इसके बाद भी श्रीराम ने न तो माता कैकेयी के संबंध में कुछ कहा और न ही उनके साथ किसी प्रकार का र्दुव्‍यवहार ही किया। जब वे वन से लौटकर 14 वर्ष बाद अवध आए, तो उन्होंने सबसे पहले माता कैकेयी से भेंट की और उनका चरण वंदन किया। इतना ही नहीं श्रीराम जब अपनी वानर सेना के साथ रावण के साथ युद्ध करने के लिए समुद्र तट पर थे, तो उन्होंने अंतिम बार अपने दूत अंगद को रावण के पास भेजकर रक्तपात टालने का प्रयास किया था। श्रीराम ने अपने दूत के माध्यम से रावण को संदेश दिया था कि उसकी और हमारी लड़ाई न तो पैतृक है और न ही समाजगत है। उन्होंने अंगद को संबोधित कर कहा था कि मित्र! तुम हमारे इस शत्रु से ऐसी बातचीत करना कि उसका भला हो और हमारा काम बन जाए। यह है सद्पुरुष का व्यवहार जो उनके द्वारा अपने मित्रों के साथ तो हितकारी मानकर किया ही जाता है, किंतु इसमें शत्रु के हितों का भी ध्यान रखा जाता है।

In English:

(Man is a creature who has to live in a society-for behavior, making his life difficult without their families, loved ones and friends with up-to-operate properly as possible. Animals have no family and he subjugated his natural instincts and do all the work. A moral and immoral behavior is not even mess with him. With humans it is imperative that he forced treats and it is not possible to walk a step without him. Man's nature and how to behave with each other in practice, to answer the question usually is said that those who like to practice with him and the other person should behave, but it is a general rule and Following this, one can not be specific. All have specific desire to become normal and somehow also strive to become exclusive live. This spirit in mind the special behavior of the superior man is expected to limit this requirement has been seen in the life of Purushottam Ram. Kaikeyi for her son Bharat Ram to Ayodhya after the emperor office authorized promised exile had asked for 14 years, but even then the mother Kaikeyi Shriram neither said anything nor with respect to any The ill-treatment carried out. Awadh 14 years after they came back from the forest, he met the first mother Kaikeyi and the phase invocation. Not only Rama when his monkey army to war with Ravana were at the beach, the last time he sent his messenger to Ravana Angad tried to avoid bloodshed. Ram Ravan through his messenger and his message was that our war is neither hereditary nor Smajagt. He said addressing Angad friend! You have such a conversation with us that it may be well with the enemy and get our work done. It Sdpurus behavior by them only with your friends, then the assumption is beneficial, but the enemy's interests are taken care of.)
Jai Guruji. 


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