Tuesday, February 24, 2015

हरदम याद रखें कि हमारा कहीं एक नित्य घर भी है ...


एक संपन्न व्यवसायी कहीं जा रहा था। चौराहे पर उसकी गाड़ी रुकी तो एक लड़का पास आया और बोला- ‘रात से भूखा हूं। कुछ मदद कर दें।’ व्यवसायी ने कहा- ‘भीख क्यों मांगते हो/ कुछ काम किया करो।’ लड़का बोला- ‘मुझे कौन काम देगा/’ उसने कहा-‘मैं तुम्हें काम दूं तो मेरे साथ चलोगे/’ जवाब ‘हां’ में मिला तो वह लड़के को अपने साथ घर ले आया। लड़का घर के सब काम करने लगा और उसने अपने मालिक का दिल जीत लिया।

मालिक ने सोचा कि क्यों न इसे कुछ पढ़ा-लिखा दिया जाए। उसने एक स्कूल में लड़के को भर्ती करा दिया। वहां भी उसकी लगन देखकर अध्यापक प्रसन्न थे। पढ़ते-पढ़ते लड़का बड़ा हो गया। आगे की पढ़ाई के लिए विश्वविद्यालय जाने लगा। धीरे-धीरे मालिक ने उसे अपने काम में में हाथ बंटाने के लिए अपने साथ ले लिया। फिर हुआ यह कि उसकी बेटी उसी लड़के से प्रेम कर बैठी। मालिक ने उनकी शादी करा दी। कुछ समय बाद व्यवसायी ने लड़के को बिजनेस कोर्स के लिए विदेश भेज दिया। समय-समय पर वह उसे पैसे भी भेजता रहता। एक बार छह महीने तक लड़के का खत नहीं आया तो ससुर का माथा ठनका। आखिरकार वह लड़के से मिलने विदेश जा पहुंचा। लड़के ने देखा कि ससुर आया है तो उसने फौरन पैर छूकर उसे अपने पास वाली कुर्सी पर बिठाया। इससे पहले कि ससुर उससे कुछ पूछें, लड़के ने कहा- ‘पापा! ये मेरी गर्लफ्रेंड है। हम दोनों एक फ्लैट में रहते हैं।’ अपनी फ्रेंड को भी उसने बताया कि यही हैं जो हमारे यहां रहने का खर्च इत्यादि भेजते हैं। बड़े अदब से उसकी दोस्त ने हाथ मिलाकर उनका सम्मान किया।

ससुर की हालत ऐसी कि काटो तो खून नहीं। उसने सोचा- अपनी पत्नी को तो इसने छह महीने से चिट्ठी नहीं लिखी और यहां इसके साथ गुलछर्रे उड़ा रहा है। फिर भी उसने बड़े प्यार से कहा- जितनी पढ़ाई तुम्हारी हो चुकी है, वो बहुत है। अब तुम अपना सामान पैक करो और भारत वापस चलो। लड़के ने कहा- ‘मैं चला गया तो मेरी मित्र का क्या होगा/ यह मेरे आसरे ही तो जी रही है।’ ससुर ने »गुस्से में कहा- ‘और वो जो उधर घर पर है/’ लड़के ने कहा- ‘जो भी हो, मैं यहां से नहीं जा सकता।’ अब आप ही बताइए कि वह लड़का गलत है कि नहीं/ यही स्थिति हमारी है। हमने अनित्य संसार में अपने आप को इतना उलझा लिया है कि हमें लगता ही नहीं कि हमारा अपना कहीं कोई नित्य घर भी है। हमारे वास्तविक माता-पिता हैं, जो हर तरह से हमारा भला चाहते हैं और हमारा भला करते हैं। हम उनका ही खाते हैं और उनको ही भूल बैठे हैं। 

Jai Guruji.

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