एक राजा ने प्रजा को संदेश भेजा कि राजकुमार का जन्मदिन धूमधाम से मनाया जाएगा। इस दिन एक बाजार लगेगा जिसमें कोई भी व्यक्ति आकर कुछ भी ले जा सकता है। उसका पैसा नहीं लिया जाएगा, लेकिन हर व्यक्ति अपनी पसंद की एक ही चीज ले जा सकता है। लोग यह घोषणा सुनकर प्रसन्न हो गए। वे अपने लिए सबसे ज्यादा जरूरी चीजों के बारे में सोचने लगे।
वह दिन आया तो बाजार लगाया गया। बाजार में हर तरह की चीजें मौजूद थीं। कुछ ही देर में खूब भीड़ जुट गई। सभी अपनी अपनी चीजें चुनने लगे। एक छोटी सी लड़की भी बाजार में घूम रही थी। वह कभी इधर जाती, जो कभी उधर। कभी किसी दुकान पर रुकती, गौर से देखती और फिर आगे बढ़ जाती। कई लोगों ने उससे कहा भी कि क्या चाहिए, हम ढूंढ देते हैं लेकिन वह कुछ न बोली। राजा भी भेस बदल कर घूम रहा था। लड़की को इधर-उधर डोलते देखा तो उसे दया आ गई। राजा ने उसे रोका और बड़े प्यार से पूछा- ‘बेटा, तुम्हें क्या चाहिए/ बड़ी देर से इधर-उधर घूम रही हो। क्या हम तुम्हारी मदद कर सकते हैं/’
राजा को दूसरे भेस में कोई पहचान नहीं पर रहा था। लड़की ने भी उसे नहीं पहचाना। लेकिन वह राजा की विनम्र बात सुन कर बोली- ‘हमें जो चाहिए, वह यहां नहीं मिल रहा है।’
राजा बहुत हैरान हुआ और बोला,‘यहां तो सभी कुछ मौजूद है।’
लड़की ने फिर वही बात दोहराई कि जो उसे चाहिए वह नहीं मिल रहा। यह सुनकर राजा को थोड़ा गुस्सा भी आया, लेकिन वह शांत रहा। उसने एक सैनिक को बुलाया और कहा- ‘इसे बाजार में घुमाओ। देखो, इसे क्या चाहिए/’
वे दोनों खाली हाथ लौट आए तो राजा ने लड़की से कहा- ‘मैं यहां का राजा हूं। ऐसी कोई चीज नहीं जो मैं न दिला सकूं। बताओ, तुम्हें क्या चाहिए/’
‘सचमुच, आप राजा हैं/’
‘हां’ राजा ने कहा।
लड़की ने अपना हाथ राजा के कंधे पर रखा और कहा- ‘मुझे आप चाहिए।’
राजा मुस्कराया और उसने बालिका के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, आज से तुम्हारा सारा जिम्मा मैं अपने ऊपर लेता हूं।’
हम भगवान से दुनिया भर की चीजें मांगते हैं। अगर हम इन चीजों को देने वाले भगवान को ही अपना बना लें, तो हमें भला किस चीज का अभाव रहेगा। श्री कृष्ण, भगवद् गीता के 9वें अध्याय के 22वें श्लोक में कहते हैं- जो व्यक्ति मुझे अपना बना लेता है, उसकी हर जरूरत को मैं पूरा करता हूं। हर तरह से उसकी रक्षा करता हूं।
Jai guruji
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