Wednesday, June 25, 2014

अध्यात्म का मार्ग ...




मनुष्य को भटका हुआ देवता कहा गया है और यह कहा जाता रहा है कि कभी तो उसको अहसास होगा अपने अंदर निहित देवत्व का। कभी तो वह पहचानेगा कि किन महान उद्देश्यों को लेकर वह जन्मा है और सृष्टा यानी उसके परमपिता ने उससे क्या-क्या अपेक्षाएं संजो रखी हैं? यह एक विडंबना ही है कि मनुष्य सब कुछ जानते-समझते हुए भी उसी राह पर चलता रहता है जो उसे नर-पशु बनने की दिशा में ले जाता है। नरपशु वह जो मात्र पेट भरने और प्रजनन क्रिया तक ही सीमित न रहे, बल्कि उसमें इतना लिप्त हो जाए कि दीन-दुनिया, भगवान-परब्रrा, समाज-परमार्थ आदि से भी उसका सरोकार न हो। इस युग की यह सबसे बड़ी नासमझी है, जो अनेक लोगों पर सवार है। अध्यात्म भटकाव से उबारने की विधा का नाम है। अध्यात्म उस दूरदर्शिता का नाम है, जिसे व्यक्ति यदि अंगीकार कर ले तो उसका देवत्व की ओर अग्रगमन का पथ कंटकविहीन होता चला जाता है।

अध्यात्म आदर्शो को जीवन में उतारते हुए जीवन को श्रेष्ठतम बनाने की विधा का नाम है। वस्तुत: यह सही अर्थो में वही विधा है जिसका आश्रय लेने पर मनुष्य अमरत्व को प्राप्त होता है। अध्यात्म मनुष्य को संकीर्णता की पगडंडी से निकाल कर उदार-परमार्थ के चौड़े राजमार्ग की पट्टी पर ले जाने वाली ऐसी प्रक्रिया का नाम है, जो देखते ही देखते व्यक्ति का आमूलचूल कायाकल्प कर देता है और व्यक्ति के जीवन में सफलता के नए द्वार खोलता है। हमें देखना होगा कि हमें किस पथ पर जाना है? कहीं यूं ही तो नहीं चल दिए, बिना कुछ सोचे-समङो-विचार किए अपरिचित स्थान का नक्शा देखे बगैर। जिसे मार्ग का पहले से ही पता नहीं,वह भटकता ही रहता है, कभी मंजिल तक नहीं पहुंच पाता। यह भटकाव बड़ी दुखभरी, संत्रसभरी परिस्थितियां पैदा करती है और तब हम परिस्थितियों को दोष देने लगते हैं। यदि भटकाव से मुक्त होना है, तो हम राजमार्ग पकड़ें अध्यात्म के अवलंबन का, आदर्शो के समुच्चय को जीवन का अपरिहार्य अंग बनाने का। फिर हम चाहें मंदिर जाएं या न जाएं, कर्मकांड करें या न करें, हमारा भविष्य निश्चित ही उज्ज्वल है। ऐसा इसलिए, क्योंकि वास्तविक भगवान जो अंतस में बैठा है, हमारे साथ है और वह मार्गदर्शन करता हुआ निश्चय ही हमें देवत्व की ओर ले जाएगा।
JAI GURUJI 

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