Tuesday, May 13, 2014

सफलता और असफलता

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख नेता राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन कर्मठ पत्रकार, तेजस्वी वक्ता और समाज सुधारक भी थे। एक बार वह बीमार पड़े। उन्हें देखने के लिए उनके एक पुराने सहपाठी प्रयाग पहुंचे। बहुत देर तक इधर-उधर की बातें हुईं फिर राजर्षि पुराने दिनों को याद करने लगे। उन्होंने अपने जीवन के बारे में बताना शुरू किया- किसी समय मैं देशी रियासतों में राजाओं के कामकाज में सुधार करने के लिए एक आदर्श योजना बना रहा था, ताकि यह दिखाने का अवसर मिले कि भारतीय शासक अंगरेजों से अच्छा शासन कर सकते है। इसी उद्देश्य के लिए बनाई गई योजना को अमल में लाने के लिए मैंने नाभा रियासत में नौकरी भी की थी, पर मैं असफल रहा। इस असफलता से मुझे पहले तो दुख हुआ, लेकिन अब लगता है कि वह मेरे लिए आगे की सफलता की भूमिका थी।’ उनके मित्र ने पूछा- वह कैसे? राजर्षि बोले- देखो, वहां मैं अंग्रेजों के कारण ही असफल हुआ। फिर मैंने अपना ध्यान देश से अंग्रेजों को हटाने में लगा दिया। नाभा में सफल होने पर संभव था कि मैं कूपमंडूक ही बना रह जाता। वहां से बाहर मैं कुछ देख ही न पाता। अपनी छोटी सी सफलता को ही महत्वपूर्ण मान अपने आप में संतुष्ट रहता। लेकिन इस असफलता ने मेरे लिए साधना का नया द्वार खोल दिया। मैं एक बड़े दायरे में आया। कई नई चुनौतियां मिलीं। मैंने उनका सामना किया और देश के लिए काफी कुछ करने की कोशिश की। यह बताने के बाद राजर्षि ने कहा- असफलता के प्रति सृजनात्मक दृष्टि अपनाने से ही हमें सफलता भी मिलती है। इसलिए सफलता में भी संभावना देखनी चाहिए। jai guru ji

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