शांति हमारा स्वधर्म है, जिसकी खोज में हम सब लगे हुए हैं। आज हम ऐसे समय में जी रहे हैं जिसमें व्यक्ति बौद्धिक रूप से पहले से अधिक विकसित है। इतनी प्रगति के उपरांत भी हम अशांत क्यों हैं? शांति के लिए क्यों व्याकुल हैं? हमारे बौद्धिक और भौतिक संवर्धन के बावजूद हम शांति का अनुभव क्यों नहीं कर पा रहे हैं? यह चिंतनीय और विचारणीय प्रश्न हैं। हम इस तथ्य से परिचित नहीं हैं कि जिस शांति की खोज में हम भटकते रहते हैं वह हमारी मूल प्रकृति है, हमारा मूल स्वभाव है। हमारा हृदय अज्ञान से आच्छादित है। हमारा अशांत मन जब सकारात्मक ऊर्जा से रहित हो जाता है तो नकारात्मकता हमारे मन में प्रविष्ट हो जाती है और हमारी इंद्रियां शिथिल होकर अपना प्रभाव हमारे कर्मो पर डालती हैं। परिणामस्वरूप हमें अत्यंत दुख और पीड़ा की अनुभूति होने लगती है और हम उससे छुटकारा पाने की युक्तियां तलाशने लगते हैं। शांति की खोज में हमारा व्यवहार आक्रामक हो उठता है। इस प्रयास में कुछ मानवीय बाधाएं इसे परिसीमित कर देती हैं, जिसमें पहली बाधा मानव शरीर है। हम न तो अपने पूर्वजन्म के बारे में जानते हैं और न ही भविष्य के बारे में। जानते हैं तो केवल अपने वर्तमान के बारे में, लेकिन वर्तमान में भी हम अनुशासित कर्म न कर अयथार्थ कर्म करते जाते हैं और भविष्य के लिए खाई खोदते रहते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि अच्छे व बुरे दोनों तरह के कर्मो का फल मनुष्य कई बार जन्म लेकर भोगता है। कर्म ही पूजा है। यह कर्म ही आपको चिरकाल के लिए महान बनाता है। शांति एक सामूहिक भावना है। इसलिए दूसरों के लिए शांति की उम्मीद रखे बगैर हम केवल अपने लिए शांति की उम्मीद रखें, यह असंभव है। जब तक हम स्वयं के साथ-साथ समाज में शांति स्थापित करने के लिए सकारात्मक कदम नहीं उठाएंगे तब तक सार्वभौमिक शांति बनाए रखने की कामना पूरी नहीं हो सकेगी। भौतिकवाद के अंतर्गत हमने एक मिथ्या भ्रम पाल रखा है कि अधिक धन-संपदा अर्जित करकेहम शांति से जीवन व्यतीत कर सकते हैं, परंतु वास्तव में धन आज तक किसी को शांति नहीं दे सका है। इस संसार की नश्वर वस्तुएं न तो हमारे साथ जाएंगी और न ही हमें शांति दे सकती हैं। हमारे सांसारिक रिश्ते भी स्वार्थ से जुड़े होते हैं। हमारी इच्छाएं अनंत आकाश के समान हैं जो हमें हमेशा तनावग्रस्त रखती हैं।
जय गुरूजी.
In English:
(Peace is our apostasy, we are engaged in the search. Today we are living in a time in which the person is intellectually developed than before. After so much progress Why are we troubled? Why are anxious for peace? Despite our intellectual and physical enrichment experience Why can not we have peace? This is worrying and a serious question. We are not aware of the fact that we languish in the pursuit of peace is our original nature, our basic nature. Our heart is covered with ignorance. When our troubled mind is devoid of positive energy is the negativity enter our minds and our senses are put on loosely, and its influence in our deeds. As a result, we begin to feel pain and misery and we seem to get rid of him finding tips. Our behaviour becomes aggressive in the pursuit of peace. Some human obstacles in the effort to limit it in that first hurdle is the human body. We neither know nor about your grandpa about the future. Know only about their present, but currently we do not inaccurate karma karma are disciplined and keep digging the trench for the future. Because the fruit of good and evil deeds of both the man often indulges birth. Work is worship. It makes great deeds for the chronically. Peace is a collective sense. Without peace, we should expect it to others only hope to keep the peace, it is impossible. We own to establish peace in the society will not be a positive step forward until universal peace will be met. We sail under a false illusion that materialism has gained more wealth Krkehm can live in peace, but peace could not really have any money to date. Goods of this world, neither mortal nor will be with us can give us peace. Our earthly relationships are linked to selfishness. Our desires are infinite heavens, we always keep stressed.)
Jai Guruji.
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