स्नान के बाद पूजाघर की ओर रुख किए झल्लाते हुए उन्होंने पत्नी को फटकार लगाई, ‘सैकड़ों बार कहा है, पूजा के लोटे-थाली हफ्ते-दस दिन में ही सही, साफ कर दिया करो। पर मेरे कहे की परवाह किसे है?’ पूजा के दौरान बाथरूम जाते बेटे पर नजर पड़ी तो उस पर बरपी हिकारतभरी फब्ती से समूचा घर सराबोर हो गया, ‘हो गया उठने का वक्त, मैं तो फिर कहूंगा इस साल बोर्ड की परीक्षा ड्रॉप कर दो, नाक तो नहीं कटेगी।’ पूजा अभी शेष थी कि घरवालों को चेतावनी जारी की गई, ‘सभी बहरे हो गए क्या, पिछवाड़े का नल टपकने की आवाज नहीं सुनाई पड़ती, तुरंत नल बंद करो!’ चंद मिनट और बीते तो सामने से गुजरती बेटी को मुस्कुराते बोले, ‘मेरी इतने करीने से की जाती पूजा के शॉट तुम व्हाट्स-ऐप पर पोस्ट करने में बहुत ढीली हो, जबकि रोजाना के धर्म-कर्म में मेरी पाबंदी को दुनिया जानती है, क्यों?’
यह कैसी पूजा, किसकी अर्चना, जब ध्यान प्रति क्षण प्रभु के अलावा कहीं और ही भटकता रहे? ध्यान करते वक्त तो सुध ही नहीं रहनी चाहिए कि आसपास क्या घट रहा है, कौन क्या कर रहा है। फिर आप चाहते हैं कि आपकी पूजा-आराधना का ढोल बराबर पिटता रहे। यह तो रस्म अदायगी हुई, प्रभु में आपने चित्त तो नहीं लगाया। सच्ची आराधना में तो भक्त और प्रभु के बीच ऐसा गहरा साहचर्य निर्मित हो जाता है कि दोनों एक हो जाते हैं, किसी तीसरी अस्मिता का पता ही नहीं चलता।
भक्ति या प्रार्थना तभी फलीभूत होती है जब इसे एकाग्रचित्त होकर निश्चल, शांत भाव से किया जाए। आराध्य कोई भी हों, मनोयोग से संपादित भक्ति से इष्टदेव के प्रसन्न होने और भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने के अनेक दृष्टांत आदि ग्रंथों में मिलते हैं। सच्चे भक्त को संकट से उबारने के लिए वे अचानक प्रकट होते हैं। एक प्रसंग उस परम शिवभक्त दंपती का है जिन्हें आवश्यक कार्य से नगर से बाहर जाना था और घर पर नाबालिग बच्चों की देखरेख की व्यवस्था नहीं थी। उन्होंने इष्टदेव को समस्या बताई। कहते हैं भगवान शिव स्वयं दंपती के लौटने तक बच्चों की चौकीदारी करते रहे। एक प्रचलित भजन में अपने प्रिय भक्तों की खातिर प्रभु द्वारा अपने नियमों में ढील का उल्लेख है, ‘प्रेम प्रबल के पाले पड़ कर प्रभु ने नियम बदल डाला।’
किसी भी प्राणी से जुड़ाव के लिए तीव्र हार्दिक इच्छा और समर्पण चाहिए। पारिवारिक और मानवीय रिश्तों का आधार भी यही है। श्रद्धा संपूर्ण होगी, विश्वास अपार और पुकार तहेदिल से, तभी परमेश्वर से संवाद संभव होगा और आपकी सुनी जाएगी। मां दुर्गा के आराधकों या नमाज अदा करने वाले हजारों में एक होता है जो समर्पण और मनोयोग से उस परम शक्ति को पुकारता है। प्रभु उसकी अवश्य सुनते हैं और कृपादृष्टि सभी पर बरसती है।
जय गुरूजी.
In English:
(After the puja room, he turned to the bath Shouts wife reprimanded, "said a hundred times, a week or ten days of worship Lotte-plate, albeit cleaned up. But I say who cares? "Go the bathroom during worship son noticed that the entire house to taunt Brpi Hikartbri got wet," the time is up, I will say again drop two board exams this year , there will obviously be the nose. 'worship had yet been issued warnings to parents,' what were all deaf, did not hear the voice of the ass dripping faucet, tap stop immediately! "After a few minutes, and then pass in front smiling daughter said, 'What's the shot you of my prayers so neatly done-the app to post to become very loose, while the daily work of the religious world knows my ban, why?'
This kind of worship, whose worship, a moment when the mind wanders elsewhere besides the Lord? While doing so should improve not only what is happening around, who's doing what. Then you want your prayers to worship the drum equal Pitta. This ritual took place, mind you, if the Lord had not. Between the devotee and the Lord in true worship is so deep that both associations are made, we do not know of a third identity.
This single-minded devotion or prayer only materialize when the calm, calmly said. Adorable irrespective edited studiously delights of the presiding deity of devotion and desire to complete a number of devotees texts etc. See illustration. To bail out the true prophet, they suddenly appear. A context is the ultimate Shivbkt couple who go out of the city was required to work and care of children at home, there was minor. The problem, he told the presiding deity. Lord Shiva himself to return the children to say the couple were guarded. For the sake of his beloved devotees worship the Lord by a prevalent norms mentions his "court of love, suffering egregious Lord changed the rules."
Any creature intense heartfelt desire and dedication to the association said. It is the foundation of the family and human relationships. Will complete faith, trust and immense cry wholeheartedly, if it would be possible to communicate with God and you will be heard. Offering prayers to the goddess Durga or thousands of worshipers is an ultimate power that is calling for the dedication and studiously. All eyes on the Lord and do listen to her cloak.)
Jai Guruji.
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