कोई भी दर्शन या विचार नया अथवा पुराना नहीं होता। सत्य, जो कल था वही आज भी है और आगे भी रहेगा। संवेदना का जो महत्व कल था, वह कल भी रहेगा। पूंजी और श्रम को लेकर न जाने कब से बहस चल रही है, लेकिन न तो पूंजी की सत्ता हिली-डुली है और न श्रम की महत्ता घटी है। समय के अनुसार हमारी दृष्टि बदलती है और उसमें कुछ नया जुड़ता और टूटता रहता है। हजारों साल पहले प्लेटो की ‘रिपब्लिक’ में समाजवादी समाज और राष्ट्र-रचना की रूपरेखा मिलती है। उससे भी पूर्व हमारे ऋषियों-मनीषियों ने हमारे सामने सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन का आदर्श रखा था। लेकिन आज की एक बड़ी मुश्किल है कि हम उनकी अच्छी बातों को दरकिनार कर उन बिंदुओं पर आ जाते हैं जिन पर विवाद हो सके।
आज पूंजी और श्रम पर बहस तो हो रही है, लेकिन हम श्रम को दोयम दर्जे पर रख समझते हैं कि उसके बिना भी काम चल सकता है, भूल जाते हैं कि तकनीक भी श्रम मांगती है। अर्थव्यवस्था के दो पक्ष हैं, पूंजी और श्रम। इनमें सर्वोच्च स्थान श्रम का है। महावीर ने श्रम को जितनी प्रतिष्ठा दी, उतनी शायद ही किसी ने दी हो। मार्क्स एक उदाहरण जरूर हैं। महावीर ने कहा है,‘जो श्रम करता है, वही श्रमण है। संत है।’
श्रम का जो उद्योगमय रूप है, उसके बारे में महावीर का विचार वही है जो रस्किन, टॉलस्टॉय और गांधीजी का रहा है। महावीर ने श्रावक के लिए कल-कारखानों का वर्जन किया है, क्योंकि वे हिंसा के केंद्र हैं। उनसे संपत्ति का केंद्रीकरण होता है, बेकारी बढ़ती है। इसलिए महा-आरंभ, महा-परिग्रह कह कर वे अपनी साधना-पद्धति में इनका निषेध करते हैं। इनके स्थान पर उन्होंने छोटे-छोटे उद्योगों को अपने दर्शन में स्थान दिया है। इससे अल्प-आरंभ, अल्प-परिग्रह, धन का विकेंद्रीकरण, आर्थिक समता तथा क्षेत्रीय स्वावलंबन स्वयं निष्पन्न होते हैं। छोटे उद्योगों में भी शोषण न हो इसके लिए उन्होंने सजगता बरतने का निर्देश दिया। संभवतः महावीर ही एकमात्र व्यक्ति थे, जिन्होंने पशुओं पर अधिक भार न लादने तक का निर्देश श्रावकीय आचार संहिता में दिया। मानवीय शोषण को तो प्रायश्चित योग्य बड़ी हिंसा कहा। इसे आज की भाषा में समाजवाद कहा जा सकता है।
समाजवाद का यह रूप भारत में स्थापित होकर यहां के लोक जीवन के लिए वरदान बन सकता है, बशर्ते वह ग्राम-राज्य मूलक, लघु एवं कुटीर उद्योगों द्वारा क्षेत्रीय स्वावलंबन पर आधारित हो। यह गांधी और महावीर का अहिंसा-प्रेम-करुणामय समाजवाद होगा। इसमें स्वामित्व-विसर्जन का भाव होगा। विसर्जन स्वामित्व का अस्वीकार है और स्वामित्व है अहं का विस्तार। वस्तु से अपना स्वामित्व हटाना। साधनों में सबका सामान हिस्सा होना।
जय गुरूजी.
In English:
(Any philosophy or idea is not new or old. Truth, which was yesterday and will be the same today. Yesterday the importance of compassion, he will be tomorrow. Capital and labor not take long debate, but neither shaken the power of capital and not labour-Duli importance has declined. Our vision is changing over time and it is something new links and breaks. Thousands of years ago Plato's 'Republic' in the framework of a socialist society and nation-formation is offered. Our sages-as early mystics had before us the ideal of social and national life. But today is a big problem that we set aside the good things come to those points on which to dispute.
So today is the debate on capital and labour, but we have to recognize that the secondary labour can work without it, forget that technology is labor demands. There are two side of the economy, capital and labor. This is the highest position of labour. Mahavira gave reputation as labor, the kind he has given. Marks are definitely an example. Mahavira has said, "The work, the same is shramana. Saint. "
Udyogmay the form of labor, about the idea of Mahavir is what Ruskin, Tolstoy and Gandhi's. For disciples of Mahavira version spare factories, because they are the center of the violence. He is the centralization of assets, unemployment is rising. So the Great start, great in-possession system of meditation, saying they refuse them. Instead, he put in his own philosophy is tiny businesses. This under-start, low-possession, decentralization of funds, economic equality and regional self-self are concluded. In order to avoid the exploitation of small businesses take the reflexes directed. Mahavir possibly the only person who was not imposed on animals by overloading Sravkiy instructions given in the code of conduct. Human exploitation worthy atonement so great violence. Today it can be said in the language of socialism.
This form of socialism, being set up in India can become a boon to the public life, provided he gram-state oriented, small and cottage industries based on regional self-reliance. Mahavir's compassionate love and nonviolence that Gandhi would socialism. It will be a sense of ownership-immersion. Immersion disclaims ownership and proprietary extension of the ego. Delete your own object. Be part of all this stuff means.)
Jai Guruji.
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