शब्द ब्रह्म रूपी कमल आचरण और साधना की उर्वरा भूमि पर ही खिलता है। आचरण की सभ्यता और मौलिकता इसकी दीर्घजीविता का मूल है। आडंबर और कृत्रिमता की कोख से जन्मा शब्द, शब्द भ्रम तो हो सकता है, लेकिन शब्द ब्रह्म नहीं। शब्द ब्रह्म अकाट्य, अनश्वर और अविनाशी होता है। शब्द ब्रह्म के चुने गए खुशबूदार शब्द-पुष्पों से वाणी का निर्माण होता है। वाणी अभिव्यक्ति का शाश्वत श्रृंगार है। व्यक्ति के क्षय हो जाने के बाद भी वाणी किसी न किसी न किसी रूप में ब्रह्मांड में कायम रहती है। शब्द भ्रम के कृत्रिम पुष्पों से अभिव्यक्ति का सांसारिक गंतव्य तो सिद्ध हो सकता है, लेकिन जीवन के असली गंतव्य और शब्द ब्रह्म की शाश्वतता और स्थायित्व को प्राप्त नहीं किया जा सकता। जब शब्द और अभिव्यक्ति आचरण और तप साधना में पगकर उपजते हैं तो वे भाषाई मिसाइल का कार्य करते हैं। शब्दों का अपव्यय इनकी ऊर्जा और शक्ति-सामथ्र्य को भी कम कर सकता है, जबकि इनका संचय और सार्थक उपयोग नई जीवनीशक्ति उपहार में देता है। अविवेकपूर्ण शब्द प्रयोग दुविधा उत्पन्न कर खुद को ही तनाव, दबाव और चिंता में डाल देता है। इसके विपरीत शब्द का सार्थक और सोद्देश्य निवेश दूसरों के लिए भी कल्याणकारी सिद्ध होता है। शब्द ब्रह्म की प्रामाणिकता प्राप्त कर देने वाला शब्द दूसरों के कष्ट, संताप, व्याधि और वेदनाओं का भी हरण कर सकता है। स्वयं और दूसरों के लिए वह सर्वथा हितैषी और कल्याणकारी सिद्ध होता है। परिष्कृत शब्द संत की तरह निर्मल और निश्छल होता है। वही कभी मीरा, नानक, कबीर, रैदास की वाणी बनकर युग का नेतृत्व और मार्गदर्शन करता है और कभी गीता, भागवत और पुराणों की मंत्र-संहिता बनकर साधकों की मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला शक्तिपीठ बनता है। झूठ, कुचिंतन और कुसंगति-प्रेरित शब्द समाज में जहर, वितृष्णा और वैमनस्यता के अलावा कुछ भी प्रचारित-प्रसारित करने की सामथ्र्य नहीं रखते। शब्द और वाणी से खंडित, बाधित या संतप्त जीवन पल में कायाकल्पित हो जाता है। शब्द और आनंद की शाश्वतता के दीप जीवन में चारों ओर टिमटिमाने लगते हैं। प्रभु कृपा से ही शब्द ब्रह्म की यह अमूल्य वटवृक्ष रूपी शब्द संपदा की छांव प्राप्त होती है।
जय गुरूजी.
In English:
(The word Brahman form of conduct and practice of lotus blooms on fertile ground. Behavioral ethics and originality is the core of its longevity. Kitsch and artificiality born of the womb of the word, the word can be confusing, but not the word Brahman. The word Brahman irrefutable, is immortal and indestructible. The word of God declares selected aromatic flowers are formed word. The voice of the eternal expression makeup. After the decay of the person, says the rough is maintained in some form in the universe. Artificial flowers earthly expression of confusion when words can prove to be a destination, but the life and words of the true destination of the divine eternity and stability can not be achieved. When words and expressions Pgkr conduct and perseverance in practice inevitable linguistic missile they operate. Their energy and power-dissipation capability of words can also reduce the accumulation and meaningful use of these new Jivnishkti gives gifts. A term used to generate unreasonable dilemma stress, pressure and anxiety puts. Conversely term meaningful and purposeful investment proves beneficial for others. The authenticity of the divine word to get the word to others suffering, anguish, disease and afflictions can also abducted. For self and others, he proves downright friendly and welfare. Sophisticated word saint is as pure and innocent. The ever merry, Nanak, Kabir, Raidas era as the voice of the leadership and guidance, and never Gita, Bhagavata and mythology of the Code as the mantra becomes seekers wishes to complete the Shakti. Lies, Kucintn and Kusngti-inspired word poison in society, besides Vamnsyta low in contempt and do not enable anything to promoted. Fragmented words and speech, interrupted or becomes afflicted Kayakalpit life at the moment. Deep in the eternity of the word pleasure in life seem to shimmer around. The word of the Lord by the grace of God the priceless treasure of the word form of Vatvriksh gives shade.)
Jai Guruji.
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