एक बार एक सिद्ध महात्मा एक राज्य के बाहरी मार्ग से कहीं जा रहे थे। उन्होंने राजमहल की सीमा के बाहर पथिकों के लिए भोजन-पानी, रैन-बसेरों की सुंदर प्राकृतिक व्यवस्था देखी तो अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्हें राजा से मिलने की इच्छा हुई। राजा तक बात पहुंची। महात्मा को सम्मानपूर्वक राजा से मिलाया गया। राजमहल के भीतर मानव जीवन के लिए आवश्यक हर वस्तु व सेवा की समुचित व्यवस्था देखकर तो महात्मा हतप्रभ हो उठे। उन्होंने वहां सुई जैसी वस्तु के लिए भी एक समुचित मानवीय प्रबंध देखा। वे राजा से उसकी कार्य-व्यवस्था के बारे में विस्तृत मंत्रणा किए बिना न रह सके। वे राज्य-व्यवस्था से इतने मुग्ध हुए कि कुछ दिन वहीं रुक गए। राजमहल के भीतर व प्रजा के साथ रहते हुए उन्होंने अनुभव किया कि यह राजा तो मुझसे भी बड़ा योगी है। इसने अपने संपूर्ण राज्य का सार्वजनिक जीवन इतना अच्छा प्रबंधित किया है कि यहां एक चींटी की हत्या भी जन संवदेना का केंद्र बन जाती है। एक दिन राजा को आशीर्वाद देकर महात्मा विदा हो गए।
पड़ोसी राजा को पता चला कि महात्मा पास के राज्य में आए और मेरे यहां नहीं, तो वह उनकी तलाश में दल-बल सहित निकल पड़ा। कई दिन-रात भटकने के बाद एक दिन संध्या समय राजा को महात्मा के दर्शन हो ही गए। महात्मा शांत पर्वत की एक संकरी गुफा में आसन लगाए बैठे थे। उन्होंने राजा से वहां आने का कारण पूछा। राजा ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की,‘आप मेरे पड़ोसी राज्य में पधारे। आपने वहां कई दिन व्यतीत किए। वहां के राजा, प्रजा को अपना आशीर्वाद दिया, लेकिन आपने मेरे राज्य की अनदेखी की। आप वहां आते तो मैं आपका संपूर्ण ध्यान रखता। आपका इतना मान-सम्मान करता, जितना आज तक किसी ने किसी का न किया हो।’
राजा की बातें सुनकर महात्मा बोले,‘राजन! मैं उस राज्य में सुविधाओं, मान-सम्मान और किसी पद-प्रतिष्ठा के स्वार्थ में नहीं रुका और न ही वहां के राजा ने मुझे राज्य में आने का निमंत्रण दिया। मैं तो वहां की श्रेष्ठता देख वहां रुकने पर स्वयं विवश हुआ। जिस राज्य की सीमा के बाहर राजमार्गों पर फलों से लदे सुंदर-सजीले हरे-भरे पक्षियों के कलरव से आच्छादित वृक्ष दीख पड़ें, जहां पथिकों के लिए भी राजसी सुविधाएं व्यवस्थित की गई हों और जिस राज्य में एक चींटी की मृत्यु पर भी राजा-प्रजा दोनों संवेदनशील हों, उस राज्य व उसके राजा को देखने की इच्छा से ही मैं कुछ दिन वहां रुका। जो राजा मानव कल्याण के लिए इतना समर्पित, सक्रिय और संवेदनशील हो वह तो साधु-संतों से भी श्रेष्ठ है!’
साधु की बात सुनकर राजा ने उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन किया और अपने राज्य को भी पड़ोसी राज्य जैसा बनाने का संकल्प लेकर लौट आया।
जय गुरूजी.
In English:
(Once a proven path from the exterior of a state of Mahatma were going somewhere. He palace outside the range of food and water for Passer-by, shelters were very happy to have seen the beautiful natural order. They wished to meet the king. The king came to the point. Mahatma respectful king were mixed. Within the palace, all goods and services essential for human life arrangements by Mahatma became stunned. He also saw the needle-like object for a proper human management. They order from the king about his work without wide consultation could not. They were so perplexed by the state, a few days stayed. Within the palace, and the people with me, he felt that this king is also great yogi. The state of its public life has managed so well that the mass killing of an ant becomes Condolences center. One day the king blessed Mahatma has disappeared.
King found out that the neighbouring state of Mahatma came to pass and not to me, so he went to search for them, including party-force. Many day-to-day, evening, night after wandering the king died, the Mahatma's philosophy. Mahatma cool mountain posture who were in a narrow cave. He asked the reason for the king. The king prayed with folded hands, "You visited me in the neighbouring state. You spent several days there. The king, the people gave their blessing, but you ignored my state. If you come there, I keep all of your attention. Your so that respect, as much as any one else has not. "
King heard the words of Mahatma said, 'Rajan! (king) I facilities in the state, honour and interests of the status not stopped, nor the king invited me to come to the state. I forced myself to stay back there is a superiority. On highways outside the state border loaded with fruits beautiful handsome green tree covered with the twitter of birds may have exposed itself, where the majestic facilities for Pthikon been organized and the king on the death of an ant-people both are sensitive, the state and its desire to see the king, I stayed there for a few days. The king so dedicated to human welfare, active and responsive than the saints he is the best! "
Listening to sage king devoutly saluted him and his kingdom from the neighbouring state to match the resolution returned.)
Jai Guruji.
No comments:
Post a Comment