हम जिस जमीन और समाज से पैदा होते हैं, उसके लिए हम क्या करते हैं? उसके साथ कैसा व्यवहार करते हैं? हमारा धर्म किताबों और उपदेशों तक ही सीमित नहीं होना चाहिए। हमारी निष्ठा की झलक हमारे दैनिक व्यवहार में दिखनी चाहिए। जिससे पाया है, उसे देना सीखें। यही सच्चा धर्म है। इस संदर्भ में अपनी मातृभूमि को हम क्या दे सकते हैं? कैसे दे सकते हैं? मातृभूमि कोई व्यक्ति तो नहीं, जिसे भौतिक चीजों की आवश्यकता हो। देने का अर्थ यह है हम जिस काबिल हों, हम जिस पद पर हों, जो कार्य हम कर रहे हों, वह ईमानदारी और निष्ठा के साथ करें। अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करना ही देशभक्ति और देश-धर्म निभाना है। मौजूदा समय में हर इंसान की सोच बहुत संकीर्ण और स्वार्थी हो गई है। यदि अपनी सोच को उदार बनाएं और जो भी कार्य करें उसे अपने देश और समाज के लाभ को ध्यान में रखकर देखें तो शीघ्र ही उसके सुखद परिणाम भी नजर आने लगेंगे। हमारी कथनी और करनी में किसी भी स्तर पर फर्क नहीं हो। दूसरों से अपना धर्म निभाने की अपेक्षा करने से पहले हम अपने धर्म यानी कर्तव्यों के पालन के बारे में सोचें। स्वधर्म के पालन से कई फायदे हैं। इससे हम जहां कई बुराइयों से बच जाते हैं, वहीं पर दूसरों की बुराई देखने और बुराई करने से भी बच जाते हैं। सफलता और असफलता के बारे में न सोचकर अपने कर्तव्यों के पालन के बारे में सोचना चाहिए। दूसरा हमारे लिए क्या कर रहा है, इस बात के बजाय हम दूसरों के लिए क्या कर रहे हैं, यह भाव हमारे लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। किसी दुराग्रह और स्वार्थ के बगैर हम अपने स्वधर्म के पालन में लगे हों तो फिर इसकी कोई वजह नहीं कि जिंदगी की परीक्षा में विफल हो जाएं। स्वयं की समझ को बढ़ाना जरूरी है। इसी से जीवन में खुशियों को लाया जा सकता है। खुशी हमें उपहार के रूप में नहीं मिलती, इसके लिए हमें प्रयास करना पड़ता है। सुख हमारे प्रयासों का फल है। स्वयं को सुखी बनाने के साथ-साथ समाज और राष्ट्र में खुशहाली लाने के लिए आवश्यक है, हम इसके लिए स्वयं प्रयत्नशील बनें। सुख पाना मानव का स्वभाव है। जब आप दूसरों को सुख देते हैं तो निश्चित रूप से आपको सुख और संतोष मिलने लगता है।
जय गुरूजी.
In English:
(We are born from the land and society, what we do for him? Behave with him? Our religion should not be confined to books and teachings. Should see a glimpse of our loyalty to our daily behaviour. Which is found, let him learn. That is the true religion. In this context, we can give your homeland? How can? Homeland is not a person, to whom the material needs. This means that we are capable of giving, we're on the post, which we're working, do it with honesty and integrity. To follow faithfully their duties patriotism and religion in India is to play. Currently, each person's thinking is very narrow and selfish. Our words and deeds do not matter at any level. Before we expect others to perform their religious duties, ie, think about your religion. There are many benefits of adherence to self-nature. It prevents us from many evils, while others look bad and depart from evil. Not thinking about success and failure should think about their duties. The second is doing for us, rather than the fact that we are doing for others, it is important for us to quote. Without any prejudice and selfishness, we are engaged in the performance of their original religion, then there is no reason why it should fail the test of life. Is essential to promote understanding of the self. This happiness can be brought to life. Happiness does not come to us as a gift, for that we have to try. Happiness is the fruit of our efforts. Make himself happy in the society and nation is essential to prosperity, we strive to become self. Achieve is the nature of human happiness. When you give others happiness then certainly you can get pleasure and satisfaction.)
Jai Guruji.
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