सत्य साध्य है और असत्य श्रमसाध्य। हम बड़े यत्न से निरंतर अपने को ढकते जाते हैं और तब गढ़ते हैं असत्य की प्रतिमा। सत्य शिशु का स्वभाव है। असत्य को ग्रहण करने में उसे बड़ा श्रम करना पड़ता है। एक सत्य को छिपाने में हमें अनेक झूठ का सहारा लेना पड़ता है। शिशु स्वभाव से निश्छल होता है, परंतु हम बड़े श्रम से उसे असत्य सिखाते रहते हैं। हमारी मिथ्या धारणा है कि उसे दुनियादारी में माहिर बनाने के लिए असत्य सिखाना जरूरी है। ऐसा करते रहने से परत-दर-परत उसके भीतर का सूर्य ढकता चला जाता है और वह झूठ के अंधेरे में भटकने के लिए मजबूर हो जाता है। अबोध बालक शत्रु-मित्र में भेद करना नहीं जानता है। वह दोनों को देखकर मुस्करा देता है और दोनों की गोद में जाने के लिए आतुर दिखाई देता है। हम उसके मन में भेद पैदा करते हैं। बालक के कोमल मन पर हम बड़े सलीके से असत्य के विष का लेप करते रहते हैं। बालक जाति-पांति नहीं जानता। वह तो निरंतर समभाव में रहता है। उसके भीतर नफरत की दीवार हम स्वयं खड़ी करते हैं। बालक के सामने हम वर्जनाओं की बाधाएं खड़ी कर देते हैं, जिसके फलस्वरूप वह सत्य के मार्ग से भटक जाता है। यही भटकन उसे हैवान बना देती है। हर व्यक्ति दावे के साथ कहता है कि उसे असत्य से नफरत है। मुझसे सत्य छिपाया नहीं जाता, परंतु होता है, इसके उलटा। असत्य हमारे भीतर इतना गहरा पैठ गया है कि धुरंधर तत्वचिंतक भी दोहरी मान्यताएं ढोते रहते हैं। सत्य का सौरभ पाने के लिए मन की कुटिलता और चित्त की काई को साधना के मंजन से साफ करना होगा। सत्य के अमूल्य रत्न को पाने के लिए हमें कुछ मूल्य तो चुकाना ही होगा। वह मूल्य चुकाया था हमारे ऋषियों ने। वे सत्य की खोज में जंगलों और पहाड़ों में अखंड साधना करते रहे। चीनी यात्री ह्वेनसांग ज्ञान की खोज में भारत आया था। सत्य की तलाश में, वह गुरुकुलों और आश्रमों में गया। यहां से योग्य शिष्यों को लेकर चीन वापस गया और वहां सत्य के ज्ञान का बीज बोया। वह भारतीय वाङ्गमय की कुछ पांडुलिपियों को साथ ले गया। इस प्रकार विश्व में पहुंचा भारत का ज्ञान-सूर्य। इन पांडुलिपियों में साधकों के जीवन का तप छपा है। इनकी रक्षा में जीवन की बलि हो जाए तो भी कम है।
जय गुरूजी.
In English:
(Truth is practicable and laborious unreal. We are diligently and continuously cover the statue then prepares unreal. Truth is the nature of the infant. Have to make efforts to assume unreal. Many of us lie to hide the truth must resort. Infant is innocent by nature, but we are teaching large labor unreal him. Our false notion that it is important to teach worldly specializes in making untrue. The layer-by-layer to do so within that covers the sun goes and he is forced to wander in the darkness of lies. Ignorant child knows not to distinguish the enemy-friend. He smiled at both of the two laps to go and eager to see. We create a distinction in her mind. We lie on the impressionable minds of children of large custom-coated poison them. The lad does not know race creed. He lives in constant harmony. We self parked inside the wall of hatred. We are taboo barriers in front of the child, which consequently he deviates from the truth. Wander That makes her yahoo. Everyone says that they claim to hate unreal. I did not hide the truth, but is its inverse. Penetrate so deep within us that is untrue unabashed Ttwcintk simply carry dual loyalties. Cynicism of mind to get the odor of truth and of the mind will be cleared of moss powder meditation. To get priceless gems of truth we will have to pay a certain price. The price paid by our sages. Forests and mountains in search of the truth in practice are monolithic. Chinese traveler Xuanzang visited India in search of enlightenment. In search of the truth, he was in seminaries and retreats. Qualified students from the Chinese went back and planted the seeds of the knowledge of the truth. Some of the manuscripts he took with Wadagmay. Thus, knowledge of the world and came to India-Sun. Seekers in these manuscripts printed tenacity of life. If life be sacrificed to protect them even lower.)
Jai Guruji.
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