Tuesday, March 15, 2016

स्वर्ग का उद्यान ..(Heaven's Garden ..)


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किसी शहर में एक संत रहते थे। वे प्राय: गरीब बच्चों के साथ ही खेलते रहते और अपने हाथों से खूबसूरत खिलौने बनाकर उन्हें देते। एक दोपहर वे पेड़ के साये में बैठे घास, फूल व पत्तों से एक छोटे उद्यान की प्रतिकृति बना रहे थे। तभी पास के गांव की एक महिला वहां से गुजरी। उस बेहद सुंदर उद्यान को देखकर उसने संत से पूछा, ‘पूछ सकती हूं, आप यह क्या बना रहे हैं?’ संत ने कहा,‘मैं स्वर्ग का उद्यान बना रहा हूं, क्या तुम इसे खरीदना चाहोगी?’ उस महिला ने संत से उद्यान का मूल्य पूछा। संत ने कहा, ‘इसका मूल्य है एक हजार रुपए।’ उस समय एक हजार रुपए बहुत बड़ी रकम होती थी, लेकिन महिला ने संत की मदद करने के उद्देश्य से एक हजार रुपए देकर उसे खरीद लिया। संत ने हजार रुपए के अनाज-कपड़े खरीद कर शहर के गरीब और बेसहारा लोगों में बांट दिए। उस रात एक अजीब घटना घटी। महिला को स्वप्न में खरीदा वह उद्यान दिखाई दिया। यही नहीं, उसे वहां प्रवेश करने का अवसर भी मिला। वहां रत्नों से जड़े महल थे और परम आनंद का वातावरण था। तभी महिला के पास एक देवदूत आया और उसने अपनी किताब में उस स्वर्ग के उद्यान को उसके नाम लिख दिया। दूसरे दिन से वह एक अनूठी प्रसन्नता में रहने लगी। पति ने खुशी का कारण पूछा तो उसने सारी बात बता दी। उसका पति भी संत के पास गया और उद्यान खरीदने की इच्छा जताई। संत ने कहा, ‘तुम्हारी पत्नी ने उद्यान प्रत्युपकार की आशा के बिना खरीदा और उसे वह मिला। तुम प्रतिफल की आशा से खरीदने आए हो इसलिए तुम्हें वह प्राप्त न हो सकेगा। बिना प्रतिफल की आशा से किया दान ही आशाओं से परे फल देता है। किसी आशा से दान करने का भाव तो व्यापार का होता है।’ संत की बात का मर्म समझ कर पति घर लौट आया।
जय गुरूजी. 
In English:

(A saint lived in a city. They often play with children from living with their hands and give them making beautiful toys. One afternoon, sitting in the shadows of the trees grass, flowers and leaves were made replica of a small garden. Then a woman from the nearby village went from there. Seeing the beautiful gardens of the saint asked, "can I ask you, what are you?" Saint said, "I'm making the gardens of paradise, you wanna buy it?" The woman saint gardens asked the price. Saint said, "It is worth a thousand rupees." At that time, there was a large sum of money to one thousand rupees, but the woman for the purpose of helping the Saints bought it by a thousand rupees. Rs saint of the city's grain-buying clothes distributed to the poor and destitute. A strange thing happened that night. Park appeared in a dream to a girl he purchased. Moreover, he also had the opportunity to enter. There were castles and enjoy the ultimate home was studded with gems. Then came an angel of a girl and he wrote his name in the book that the gardens of paradise. The other day she moved into a unique pleasure. When asked why she cheered her husband said it all. Her husband went to the saint and expressed his desire to buy the park. Saint said, "Your wife bought the garden and he was without hope of Selfless. You have come to buy in the hope of reward, so you will not get it. Donations made without hope of return is the fruit beyond expectations. Giving a sense of hope is in the business. "By understanding the crux of the husband returned home to the saint.)
Jai Guruji.

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