Sunday, March 13, 2016

जिओ ऐसे कि न तुम संसार को छुओ और न संसार तुम्हें छू पाए. ..(Touch the world and not the world that you live not let you touch...)


Image result for spirituality

दो भिक्षु एक नदी पार कर रहे थे। उनमें से एक बूढ़े भिक्षु ने देखा कि एक युवती नदी पार करना चाहती है, तो वह घबरा गया। नदी गहरी है, शायद युवती कहे कि मेरा हाथ संभाल लो। वह अनजान मालूम होती है। सुंदर युवती है! 

वह उसके पास से निकला, युवती ने कहा भी कि मुझे नदी के पार जाना है, क्या आप मुझे सहारा देंगे? उसने कहा, मुझे क्षमा करो, मैं भिक्षु हूं, स्त्री को मैं छूता नहीं! और उसके हाथ-पैर कांप गए और वह भागा तेजी से नदी पार कर गया।

बूढ़ा आदमी! बहुत दिन का दबाया हुआ काम, भीतर फुफकार मारने लगा। यह खयाल ही कि स्त्री का हाथ पकड़ ले, सपनों को जन्म देने लगा। 

उसने मन ही मन भगवान को धन्यवाद दिया कि चलो बचे, एक झंझट आता था, एक गड्ढे में गिरने से बचे! तब उसने पीछे लौटकर देखा तो हैरान हो गया। हैरान भी हुआ, थोड़ी जलन भी पैदा हुई। वह जो युवा संन्यासी पीछे आ रहा था, लड़की को कंधे पर बिठाकर नदी पार करवा रहा है।

यह क्या पाप हो रहा है? उसने सोचा।

दो मील तक दोनों चलते रहे। आश्रम पहुंचने के पहले तक बूढ़ा कुछ बोला नहीं। वह बहुत नाराज था। 

नाराजगी में ईर्ष्या भी थी, नाराजगी में रस भी था, क्रोध भी था। सभी कुछ मिश्रित था। वे जब सीढ़ियां चढ़ने लगे आश्रम की, तब बूढ़े से न रहा गया। 

उसने कहा कि सुनो मुझे गुरु से जाकर कहना ही पड़ेगा, क्योंकि यह तो नियम का उल्लंघन हुआ है। और तुम युवा हो, और तुमने स्त्री को कंधे पर बिठाया, स्त्री सुंदर भी थी! 

युवा ने कहा, आप भी आश्चर्य की बात कर रहे हैं। मैं तो उस स्त्री को नदी के किनारे उतार भी आया। क्या आप उसे अब भी अपने कंधे पर लिए हुए हैं? 

यह संसार, है तुम्हारे पास, तुम में स्थित, तुम इसमें स्थित। मगर ऐसा भी जीने का ढंग है कि न तुम संसार को छुओ, न संसार तुम्हें छू पाए। तुम ऐसे गुजर जाओ, अस्पर्शित, क्वांरे के क्वांरे। यह कालिख तुम्हें न लगे। ऐसे गुजरने का ढंग है- उस ढंग का नाम ही साक्षी है। 

न सुख की कोई कामना है, और न दुख का कोई भय है। न कुछ होना है, न कुछ बचना है।

न कहीं जाना है, न कुछ बनना है। सब आश्रय गिर गए, अब कल्पना को कहां खड़ा करें? कुछ लोग धन पर कल्पना को खड़ा किए हुए हैं वह उनका आश्रय है। 

एेसे लोग नींद में भी रुपये ही गिनते रहते हैं। और कुछ लोग हैं पद के दीवाने; वह बस उनकी कुर्सी ऊपर उठती जाए, हरदम इसकी ही फिक्र में लगे हैं। 

वह उनका आश्रय है। मगर ये सब आश्रय हैं मन के।
जय गुरूजी. 

In English:

(Two monks were crossing a river. The old monk saw that one of them a woman wants to cross the river, so he panicked. River deep, maybe she should say that my hand handle. He still seems unaware. She is beautiful!
He turned from her, she also said that I have to go across the river, you will support me? He said, I am sorry, I am a monk, a woman I did not touch! And his limbs trembled and she ran swiftly crossed the river.
Old man! Long press of work, began to hiss in. This idea that a woman's hand to take hold, and gave birth to dreams.
He thanked God that the heart's left, it was a mess, the rest falling into a pit! Then he looked behind him was surprised. Was surprised, a little burning sensation arose. He was coming up behind the young monk, is to get across the river to the girl sit on the shoulder.
What is sin? He thought.
Both walked two miles. Before reaching the ashram did not have some old. He was very angry.
I was jealous resentment, displeasure was the juice, was also angry. Everything was mixed. They went up the steps of the Hermitage, the old do not restrain.
She will have to listen to me and say to the master, because it violated the rules. And you're young, and you sit on her shoulder, she was beautiful!
Young said, you are also surprising. I came down to her side of the river. What are you still on my shoulders?
This world, you have, in you, you in it. But it is also the way of life that you do not touch the world, not the world could touch you. You go through that, untouched, the Kwanre Kwanre. The soot was not you. That way-the only way of passing the name of the witness.
Any desire nor pleasure, nor any fear of suffering. Is not to be something, something to avoid.
Do not go anywhere and not have to be something. All have fallen shelter, where now stands the imagination? Imagine standing on some money he had made his shelter.
People are sleeping in arm rupee count. And crazy as some people; He simply rises up to his chair, always pursuing the same concern.
He is their shelter. But these are sheltered mind.)
Jai Guruji.

No comments: