बीज में अनंत संभावनाएं अवश्य हैं, पर वह उन्हें देख नहीं पाता। हम सब भी बीज रूप हैं। हम अपने भीतर झांक सकते हैं। इसलिए जीवन दर्शन की अधिक उज्ज्वल संभावनाएं हमसे जुड़ी हुई हैं। अपने भीतर झांकना ही तो आत्म-भावना से साक्षात्कार करना है। धन्य है वह बीज जो अपनी आत्म स्थिति से बेखबर होते हुए भी स्वयं के अंदर आकाश उतार लेता है। लेकिन हम सक्षम होते हुए भी अपनी सक्षमता से सरोकार नहीं रखते।
दुनिया में हम जीते हैं दुनिया के लिए। शायद दुनिया के लिए भी नहीं। जीते हैं मात्र पांच से पच्चीस लोगों के साथ रागात्मक संबंधों में और सौ-दो सौ गज जमीन के ममत्व के पोषण में। अपने लिए तो शायद हम कभी जिए ही नहीं। अपने लिए तो हम निरंतर मृत्यु की ओर बढ़ रहे हैं। जब कि यह जीवन हमें मिला है जीने के लिए- निजत्व की पंखुड़ियों को बेबाक खोलने के लिए।
हम हैं कि लगे हैं दूसरों को जानने में। पर क्या अब तक किसी को जान पाए? हम तो अपने परिवार तक को नहीं जान पाए। कौन आदमी अंदर से कैसा है, कोई नहीं कह सकता। किसी दूसरे को जाना ही नहीं जा सकता। हां, खुद अपने आपको जाना जा सकता है।
हमारे पांव आकांक्षाओं और ममत्व के बंदीगृह में फंसे हैं। विचित्र बात यह है कि हमने इसे बंधन नहीं, अपना घर ही मान लिया है। इससे निकलना भी नहीं चाहते। हमारे ऋषि, मुनि और गुरु हर पल इस बंदीगृह का ताला खोलने की चाबी ‘प्रभु के वचन’ हमारे हाथों में थमाते हैं। मगर हम यही सोच-सोच कर कि - यह कारागार ही सही, पर है तो जाना-पहचाना, चिर-परिचित। पैरों में मोह-माया की जंजीर भले ही हो, निकास का द्वार भी बंद हों, पर आराम से तो हैं। बाहर की विराटता तो अज्ञात है। कौन खुले आकाश में उड़ने का जोखिम उठाए, लेकिन जो इस कारागार को तोड़कर खुले आकाश में उड़ने को उत्सुक है। स्वयं के पंखों की क्षमता से विराटता को आत्मसात करना चाहता है। वही उस विराट परमेश्वर को पाएगा।
परमात्मा का प्रवेश-द्वार है शांत मन। पर मन मस्ती का प्यासा है। हमारी तो दो ही निगाहें हैं, लेकिन मन के पास हजारों आंखें हैं। उस सर्वशक्तिमान को पाना है तो विचरण करें उस लोक में जहां मन की गति नहीं है। पहचानें मन के व्यक्तित्व को, उजागर करें उसके दृष्टा-स्वरूप को। मन स्वयं कोई ऊर्जा नहीं है। हम ही उसे ऊर्जा देते हैं, तो वह गतिशील होता है। हम ही उसमें चाबी भरकर अविराम इधर-उधर दौड़ाते हैं। जैसे ही हम ये चाबी भरना बंद करेंगे, अस्तित्व के आंगन में दृष्टा-भाव का सूर्योदय हो जाएगा।
जय गुरुजी.
In English:
(There are endless possibilities to seed, but she could not see them. As we are all seeds. We can look inside. Us more bright prospects are linked to the philosophy of life. Interviewing peek inside is so self-sense. Blessed be the seed in his own self, while the dark sky takes off. But we were able to keep their competence is concerned.
In the world we live to the world. Maybe not for the world. With only five wins from five hundred to two hundred yards in effective ties attached to the ground in nutrition. So maybe we never lived there for you. So we are moving steadily towards its death. When we got to live this life frank-the realm of the private open petals.
We know that there are others. By now you should know what? We could not even my family. What man is like from inside, no one can say. Can not go to another. Yes, you can go your own.
Our feet are trapped in the prison of desire and attachment. The bizarre thing is that we do not make it binding, is taken at home. It would not get. Our sage, sage and master key to unlocking every moment of the prison, "the word of the Lord" in our hands are hold. But we do this by thinking that - the prison right, so familiar, familiar. Even chained feet of fascination-Maya, the exit doors are closed, then the rest. The hugeness of the unknown. Who the risk of flying in the open sky, but is eager to fly in the open air prison break. Hugeness of the ability to assimilate themselves wings wants. That's the whole will of God.
Entrance divine mind calm. Fun mind craves. We have two very eyes, but thousands of minds eyes. Browse to the Almighty to the speed of the mind is not in the public. Identify the personality of the mind, to highlight the visionary-format. The mind itself is not an energy. We give him energy, it is dynamic. We ride around to it non-stop filling the key. As we enter this key will stop, the sunrise will be the attitude of being a visionary in the courtyard.)
Jai Guruji.
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