एक राजा की एक आंख खराब थी। वह अपना चित्र बनवाना चाहता था। इस काम के लिए उसने चित्रकार को दस हजार रुपये का पुरस्कार देने की घोषणा की। तीन चित्रकारों ने राजमहल जा कर राजा के चित्र बनाए। पहले चित्रकार ने सुंदरता को महत्व दिया। उसने राजा को अपने चित्र में दोनों आंखों से देखने वाला दिखाया। दूसरे चित्रकार ने सत्य को महत्व देते हुए राजा की खराब आंख दिखाई। तीसरे चित्रकार ने सत्य और सुंदर का समन्वय करते हुए ऐसा चित्र बनाया जिसमें राजा धनुष पर बाण चढ़ाए अपने लक्ष्य पर निशाना साध रहे हैं। इस आकृति में न राजा की आंख की खराबी छुपाई गई और न दिखाई गई। राजा ने तीसरे चित्र को मान्य घोषित किया और उसके चित्रकार को पुरस्कृत और सम्मानित किया। मनुष्य विचारशील और विवेकशील प्राणी है। उसमें मतभेद स्वाभाविक है, पर अहिंसा के प्रयोग और विकास के लिए मन का भेद नहीं होना चाहिए। विचारों की स्वतंत्रता भी अनुचित नहीं है। इससे विकास के नये आयाम उद्घाटित होते हैं, पर विचारों की अभिव्यक्ति मधुरता और नम्रता से होनी चाहिए। जहां भाषा में आग्रह और आवेश होता है, वहां सत्य भी कमजोर पड़ जाता है। इसलिए सत्य और सुंदर (अहिंसा) का समन्वय होना चाहिए। ज्ञानी उसे कहा गया है, जो प्राणी मात्र के प्रति एकता और समता के भाव का विकास करता है। इसके लिए सामुदायिक चेतना जागना जरूरी है। तभी व्यक्तिवाद और स्वार्थवाद से इंसान मुक्त हो सकता है। डार्विन ने जीवन की सुरक्षा और निरंतरता के लिए शक्ति और योग्यता का विकास आवश्यक बताया है। जीवों की जो प्रजाति हर परिस्थिति और चुनौती झेल सकती है, वही अपने जीवन की सुरक्षा करने में सफल हो सकती है। आज विज्ञान ने भौगोलिक दूरी पर विजय हासिल कर ली है। संसार एक गेंद की तरह छोटा हो गया है, लेकिन दूसरी ओर भाई-भाई में मानसिक खाई चौड़ी होती जा रही है। इस विरोधाभास के कारण सामाजिक जीवन में तनाव बढ़ रहा है। यदि अहिंसा और समता को सम्मान की नजर से नहीं देखा जाएगा तो भौतिक सुख-साधनों का विस्तार भी इंसान को शांति की नींद नहीं दे सकेगा। अध्यात्म के आचार्यों ने कहा है- युद्ध करना परम धर्म है, पर सच्चा योद्धा वह है, जो दूसरों से नहीं, अपने आप से युद्ध करता है। अपने विकारों और आवेगों पर विजय प्राप्त करता है। जो इस सत्य को आत्मसात कर लेता है, उसके जीवन की सारी दिशाएं बदल जाती हैं। जबकि एक हिंसक अपनी बुद्धि और शक्ति का उपयोग विनाश और विध्वंस के लिए करता है। jai guruji

'गुरु जी का आश्रम' (शिवांश), नई दिल्ली (भारत) में छतरपुर मेट्रो से लगभग छह किलोमीटर दूर स्थित है, भाई के कहने पर मै एक बार उनके आश्रम में गया मुझे यहाँ पर एक अद्भुत शांति महसूस हुई, मैंने आज तक ढोंगी गुरु / बाबा को देखा है, और सभी ने लोगो को मुर्ख बना कर उनके विश्वास को तोडा है, लेकिन यहाँ आपको शांति महसूस होगी, एक बार आप यहाँ आकर गुरु जी के समाधी स्थल पर अपना माथा झुकाये और लंगर का प्रसाद ग्रहण करे और अपने आप को गुरु जी को समर्पण दिल से करे, फर्क महसूस करेंगे। - (वीरेंद्र कुमार गुप्ता.)
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