सनातन धर्म में तथ्यों को इस प्रकार परिभाषित किया गया है कि ये समय के अनुसार अपनी मूल भावना को सुरक्षित रखते हुए हर काल में सार्थक प्रतीत होते रहें। इसी क्रम में देवताओं और राक्षसों को परिभाषित किया गया है। मानवता का तात्पर्य ऐसे कृत्यों से है, जिससे संपूर्ण मानव जाति का कल्याण और सुरक्षा हो सके। इसलिए जो कृत्य मानवता के विपरीत होते हैं, उन्हें राक्षसी और जो इसके हित में होते हैं उन्हें देवतुल्य कहा जाता है। स्पष्ट है कि दूसरों को पीड़ा देने वाले कृत्यों जैसे हिंसा, चोरी और स्त्रियों के प्रति अपराध आदि को ही राक्षसी कृत्य कहा जाता है। आदिकाल में भी मानव समाज के कुछ लोग मानवता के विपरीत ऐसे कृत्य करते थे, जिन्हें त्रेता और द्वापर युग में राक्षस पुकारा जाता था। इस समय कलियुग में तो इनकी भरमार है। इनकी भरमार होने के कारण आज के युग में मानवता के स्थान पर जंगल के नियमों का ही वर्चस्व कायम है। ऐसा इसलिए, क्योंकि राक्षसी प्रवृत्ति के अनेक मनुष्य भौतिक जगत में किसी भी प्रकार से अकूत धन कमाने का कृत्य करते हैं। कुछ लोग हैं, जो सत्ता और अपने विशेषाधिकारों के जरिये बेशुमार धन अर्जित करना चाहते हैं। प्रजातंत्र में वोटों से सत्ता प्राप्त होती है, लेकिन कुछ लोग सत्ता का दुरुपयोग कर धन कमाने को अपने जीवन का लक्ष्य मानते हैं। जो कार्य किसी लोभ या लालच के बगैर दूसरों की भलाई के लिए किए जाते हैं, उन्हें देवतुल्य कहा जाता है। जैसे सूर्य और पवन पूरे संसार को प्रकाश और वायु प्रदान करते हैं। इसलिए इनको सूर्य और पवन देव पुकारा जाता है। इसी प्रकार इंद्र संसार को बारिश के जरिये जल देते हैं, इसलिए उन्हें भी देव कहा जाता है। इस प्रकार त्रेता और द्वापर युग में सद्कर्म करने वाले लोगों की संख्या ज्यादा थी। इसीलिए ऐसी मान्यता है कि उपयरुक्त दोनों युगों में आम जनता सुखी थी और चारों तरफ शांति व प्रेम का वातावरण व्याप्त था। बहरहाल नैतिक मूल्यों में गिरावट के कारण त्रेता, द्वापर युग में परिवर्तित हो गया और गिरावट का क्रम सतत चलने के कारण द्वापर घोर कलियुग में परिवर्तित हो गया। कलियुग में भी देवतुल्य लोग हुए हैं, परंतु इनकी संख्या नगण्य है। आज के युग में भी सार्वजनिक धन की लूट और जनता की भलाई के कार्यो में भी भ्रष्टाचार व्याप्त है, जिसे राक्षसी प्रवृत्ति के कुछ लोगों द्वारा अंजाम दिया जा रहा है। ऐसे लोगों को यह बात समझनी चाहिए कि देवतुल्य कर्मो के आगे राक्षसी कर्म अंतत: पराजित हो जाते हैं।
जय गुरूजी.
In English:
(Sanatana Dharma is defined in the facts that the time while preserving its original spirit of the times seem to be worthwhile. Gods and demons is defined in that order. Implies that such acts of humanity, welfare and safety of the entire human race possible. Acts which are so contrary to humanity, they are monstrous and its interest called them godlike. Clearly, the acts that hurt others such as violence, theft and crime against women etc. is called the monstrous act. Some people in a primitive dimension of human society acts that were contrary to humanity, which was called Treta and Dwapara era monster. At this time, these opportunities are very Kaliyuga. Due to their abundance in the place of humanity in today's era dominated by the laws of the jungle prevails. Because many demonic man in the material world to act in any way to make huge money. Some people who want to earn money with greater power and their privileges are through. Democracy is the power of vote, but some people earn money by abuse of power to believe your life's goals. Who work for the good of others, without any greed or avarice are, they are called godlike. Such as sun and wind provide light and air to the whole world. So they called God's sun and wind. Similarly, the world of Indra give rain water through, so they called the God. Thus the number of people who Sdkarm Treta and Dwapara era over. It is believed that the general public in both age Upyrukt so happy and all around there was an atmosphere of peace and love. However, due to the decline in moral values, Treta, Dwapara age was changed in order to fall further due to the ongoing gross Dwapara Yuga changed. In Kali Yuga people are godlike, but their number is negligible. Today, in the era of plunder of public funds and corruption in the activities of public good that is being done by some demonic. Such people should understand that the monstrous act of godlike deeds eventually become defeated.)
Jai Guruji.
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