Wednesday, June 1, 2016

चुनौती का भाव हमें एक-दूसरे से होड़ के लिए उकसाता है...(Sense of challenge one another Competition from knocks...)


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ईसा-पूर्व छठी शताब्दी में चीन के महामनीषी लाओत्से ने एक बार अपने देश के सभी पहलवानों को मल्ल-युद्ध के लिए चुनौती दे डाली। लोग इस बात पर हंसते, लेकिन उनकी मेधा के प्रति नत-मस्तक भी थे। वे जानते थे कि इस चुनौती में कोई न कोई रहस्य अवश्य होगा। आखिर में उन्होंने लाओत्से से पूछ ही लिया कि शरीर से इतने दुर्बल हैं आप कि राह चलता कोई भी व्यक्ति आपको नीचे गिरा दे, फिर नामी-गिरामी पहलवानों को चुनौती क्यों दे दी? लाओत्से ने हंसते हुए कहा कि उनको कोई अवसर देगा, तभी तो वे मुझे चित्त करेंगे। मैं पहले ही चित्त लेट जाऊंगा। फिर मुझे कौन पछाड़ेगा।

लाओत्से के इस संकेत को समझा जाना चाहिए। जहां चुनौती है, वहीं जय और पराजय का भाव है। यह भाव ही हमें एक-दूसरे को पटकने, धकेलने और पीछे छोड़ने के लिए उकसाता है। यानी प्रतिद्वंदिता को जन्म देता है, और यहीं से दुश्मनी शुरू होती है। जहां चुनौती ही समाप्त है, वहां कैसी होड़ और मुकाबला? वहां हर कदम के साथ स्वयं मंजिल जुड़ी है। आज अगर हम खुद को देख पाने से बचते हैं तो अपने आस-पास और देश-दुनिया को देखें तो समझ में आ जाएगा कि एक-दूसरे को गिरा कर आगे बढ़ने की कोशिश या रणनीति किस हाल में पहुंच गई है। किसी गिरते को उठाने की चिंता लुप्त जैसी हो गयी है। हम दर्शक के रूप में भी जब खेल के मैदान में होते हैं तो खेल का आनंद लेने की बजाय पक्षकार हो जाते हैं। किसी के लिए जमकर तालियां बजाते हैं और किसी को हारते हुए देखना चाहते हैं। अनेक ऐसी घटनाएं सामने हैं जब मैदान खेल से ज्यादा युद्ध का हो गया है।

दरअसल खुशी और आनंद की परिभाषा ही हमने बदल डाली है। दूसरों की सफलता हमें खुश करने से ज्यादा डराने लगी है। हमारे दिमाग में आ गया है कि वह आगे जा रहा है, हम पीछे छूट रहे हैं। 

यहीं महावीर कहते हैं कि तुम अपनी जीत की चिंता छोड़ो। चिंतन यह करो कि कोई तुमसे पिछड़ तो नहीं रहा है। यह साथ चलने की अवधारणा है जिसके पीछे पारस्परिक सहयोग और प्रेम का भाव है। प्रेम-भीना हर पग मंजिल से ज्यादा आनंद देने वाला होता है। इसलिए कहा गया है,‘परस्परोग्रहो जीवानाम- जीव का लक्षण है परस्पर उपग्रह, परस्पर प्रेमपूर्ण सहयोग। जीव का ही नहीं, जीवन का भी यही लक्षण है।

गीता में श्री कृष्ण कहते हैं, तुम देवताओं का पोषण करो और देव तुम्हारा पोषण करें। परस्पर एक-दूसरे का पोषण करते हुए तुम परम श्रेयश को प्राप्त करो। हमारे शास्त्र कहते रहे हैं कि ‘सभी सुखी हों, सभी निरामय हों। सभी का कल्याण हो। किसी को दुख न मिले।’ यानी हम भी फलें-फूलें और दूसरे भी हमारी तरह से रहें।

जय गुरूजी.

In English:

(Saint of China in the sixth century BC Lao Tzu once his country's war for all wrestlers challenged Mall. People laugh, but their intellect to-head was advanced. They knew that this challenge will be one of those secrets. Lao Tzu that he was finally questioned the way the body moves so weak that no person below you throw down a challenge to the well-known wrestlers did you give? Lao Tzu laughed and said he will no opportunities, which is why he'll mind me. I will lay before the mind. Who lifted me again.

Lao Tzu, the sign must be understood. The challenge, there is a sense of victory and defeat. This sense we throw each other, pushing and moves to leave behind. This gives rise to rivalry and hostility from here begins. Where the challenge ends, how the competition and compete? The floor itself is associated with each step. Good as a falling raise concerns evaporate. We as viewers are then also enjoy playing in the playground rather than become a party. For some applause and would like to see someone lose. Several such incidents of the war is over when the game field.

In fact, we have changed the definition of happiness and joy. Did the success of others please us more than to scare. It is our mind that going forward, we are left behind.

He says there are concerns that you leave your winnings. Stop thinking that this is not someone you have lost. It is run with the concept behind which is the spirit of mutual cooperation and love. Love-Bina is going to enjoy every step over the floor. So

Have been "signs of life Jiwanam- Prsprogrho mutually satellite, mutually loving cooperation. Organism and not just the symptoms of life.

Krishna says in the Gita, you nurture the gods and the god of your nutrition. Nurture one another while you do get the ultimate Shreyas. Our scriptures say that "all are happy, everyone is sane. All may be well. Do not hurt anyone. "That way we keep our Flen-fruit and others.)

Jai Guruji. 


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