जब एक बार व्यक्ति मनुष्य योनि में आ जाता है तो मानवता उससे स्वयं जुड़ जाती है, लेकिन इस मानवता का उसे हमेशा ध्यान रखना चाहिए और इससे विलग न होना ही उसके जीवन की सार्थकता है। कहते हैं कि मानव की प्रतिष्ठा में ही धर्म की प्रतिष्ठा है। कोई भी धर्म श्रेष्ठ और महान हो सकता है, लेकिन मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं हो सकता। स्वामी विवेकानंद मानव धर्म को ही सर्वोपरि समझते थे। वे बेलूर में रामकृष्ण परमहंस मठ की स्थापना के लिए धन एकत्र कर रहे थे। इसके लिए जमीन पहले ही खरीदी जा चुकी थी। उन्हीं दिनों कोलकाता में प्लेग की महामारी फैल गई। स्वामी जी ने तुरंत मठ निर्माण की योजना टाल दी और एकत्रित धनराशि से रोगियों की सेवा करने लगे। किसी ने उनसे पूछा, अब मठ का निर्माण कैसे होगा? स्वामी जी ने कहा, इस समय मठ निर्माण से अधिक मानव सेवा की आवश्यकता है। मठ तो फिर बन सकता है, लेकिन गया हुआ मानव हाथ नहीं आएगा। स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि सच्ची ईशोपासना यह है कि हम अपने मानव-बंधुओं की सेवा में अपना पूरा जीवन लगा दें। जब पड़ोसी भूखा मरता हो तब मंदिर में भोग चढ़ाना पुण्य नहीं, बल्कि पाप है। जब मनुष्य दुर्बल हो, तब हवन में घी जलाना अमानवीय कर्म है। जो जाति रोटी को तरस रही है, उसके हाथ में धर्म ग्रंथ रखना उसका मजाक उड़ाना है।’ लेकिन वर्तमान में लगभग सभी व्यक्ति इसके विपरीत कार्य कर रहे हैं। वे तो बस अपनी खुशियां ढूंढ रहे हैं। हालांकि वे इस बात को भूल गए हैं कि जब वे औरों को खुशियां देंगे तो उन्हें अपने आप खुशियां मिल जाएंगी। एक ज्ञानी संत की मृत्यु हो गई। धर्मराज ने उन्हें नर्क भेजने का आदेश सुनाया। इस पर संत ने कहा, मैंने सालों तक ईश्वर की तपस्या की फिर मुझे स्वर्ग में क्यों नहीं भेजा जा रहा है? धर्मराज से कहा, हे वत्स मुझे पता है कि तुमने कठिन से कठिन तप किया। किसी को कष्ट नहीं दिया, लेकिन तुमने परोपकार भी नहीं किया। अपने अर्जित ज्ञान से किसी अज्ञानी की मदद नहीं की, किसी रोगी का उपचार नहीं किया, किसी भटके राही को सही मार्ग नहीं दिखाया। वास्तव में तुम जानते ही नहीं हो कि परोपकार ही असल मायने में ईश्वर की सेवा करना है। यह सुनकर संत को अपनी गलती का अहसास हुआ।
जय गुरूजी.
In English:
(When a person comes in human form so that humanity itself is added, but the humanity of thumb to remember him and separated his absence is the way. That human dignity is the dignity of religion. No religion is superior and can be great, but humanity can not be bigger than any religion. Swami Vivekananda considered paramount to human religion. They founded the monastery in Belur Ramakrishna were raising money for. The land had already been acquired. In those days the plague epidemic spread in Kolkata. Swamiji deferred construction plans and the money collected from the monastery immediately began to serve patients. Someone asked him how to build the monastery now? Swami said, the construction of the monastery requires more human services. Math can be so, but there were no human hand will come. Swami Vivekanand Isopasna it true that we have put their lives in the service of human exiles. When hungry neighbor dies, then plating enjoyment shrine virtue, not a sin. When man is weak, then the fire to burn fuel to inhuman deeds. The race yearn bread in his hand, lay religious texts is to make fun of him. "But almost everyone currently working on the contrary. They are just looking for their happiness. Although they have forgotten this fact when they give happiness to others, they will be added to your happiness. Died of a wise sage. Dharmaraja ordered to send them to hell,. The saint said, I have years of penance to God in heaven, then why not me being sent? Dharmaraja said, I know that you, O Watts difficult meditated. Did not offend anyone, but you did not do charity. Did not help either ignorant of their acquired knowledge, a patient did not show the right path to a wandering traveler. In fact you may not know that charity is to serve God in the true sense. Hearing this, the saint realized his mistake.)
Jai Guruji.
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