सन् 1899 में स्वामी रामतीर्थ अमेरिका पहुंचे थे। उन्होंने अमेरिकी जनता को सनातन धर्म के ज्ञान से अवगत कराया था। अमेरिका के प्रबुद्धजनों ने जब स्वामीजी को सुना तब वहां के समाचारपत्रों ने प्रकाशित किया कि सनातन धर्म (हिन्दू धर्मो) सत्य की खोज में काफी आगे पहुंच चुका है। अमेरिका के लोगों ने जाना कि सनातन धर्म किसी अवधारणा पर आधारित नहीं है। यह विचारों का संग्रह नहीं है। यह मानवीय बुद्धि के निष्कर्षो का संकलन भी नहीं है। यह धर्म भारत के प्राचीन ऋषियों के तपोबल से उद्घटित सत्य का प्रकाश है। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रूजवेल्ट इतने प्रभावित हुए कि वह स्वयं चलकर स्वामी रामतीर्थ के दर्शन करने पहुंचे। बाद में समाचारपत्र वालों को अपना अनुभव बताते हुए रूजवेल्ट ने कहा था कि भारत के इस संत को मैंने अमृत बांटते हुए देखा। भारत के साधु-संत सनातन सत्य के अमृत का पान ही नहीं करते, बल्कि इसे बांटते भी हैं। यह क्रम हजारों सालों से बना हुआ है। जब महादेव शंकर शिव हुए तब ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ का सिद्धांत प्रतिपादित हुआ। शिव यानी कल्याण, यह सबके लिए है न कि व्यक्तिगत। इसलिए ऋग्वेद की ऋचाएं सबके कल्याण के लिए रची गईं। सबका कल्याण हो, इसी भाव से ओत-प्रोत हमारे साधु-संत सनातन सत्य को सतत उद्घाटित कर रहे हैं, पर हर काल में विपरीत बुद्धि का भी प्राकट्य हुआ है। हिरण्यकश्यप के हनन के लिए श्री विष्णु को नर्सिंग अवतार लेना पड़ा। रावण के त्रस से समाज को मुक्त कराने के लिए श्रीविष्णु को रामरूप में अवतार लेना पड़ा। इसी तरह कंस के वध के लिए श्रीकृष्ण का अवतार हुआ। विपरीत बुद्धि अमर्यादित अहंकार से उत्पन्न होती है, जो आसुरी शक्तियों में बदल जाती है। असुर और कुछ नहीं अमर्यादित अहंकार है। अहंकार के वस में व्यक्ति सत्य को देखना बंद कर देता है। वह सिर्फ अपनी वासनाओं की पूर्ति चाहता है। अपने दंभ का प्रभाव चाहता है। सर्वत्र अपना वर्चस्व चाहता है। वह हर उस व्यक्ति को खत्म कर देने को तत्पर रहता है, जो उसकी सत्ता को चुनौती देता है। जिस तरह नशे में व्यक्ति सही-गलत का विवेक खो देता है, उसी तरह अहंकार के मद में भी व्यक्ति सही-गलत का विवेक खो देता है। वह जो सोचता है वही सही है, उसे हमेशा ऐसा भाव रहता है। अहंकार आज भी मौजूद हैं। अहंकार को ख़त्म कर के ही सही मनुष्य बना जा सकता है.
जय गुरुजी.
In English:
(He arrived in America in 1899, Rama Tirtha. He was exposed to the public knowledge of Sanatana Dharma. Then there's the Swami heard Prabuddhjnon American newspapers published by the Sanatan Dharma (Hindu religion) has reached much further in the search for truth. Americans go to the eternal religion is not based on a concept. It is not a collection of ideas. It is not a compilation of the findings of human intelligence. The religion of the ancient sages of India Tpobl Udgtit the light of truth. US President Roosevelt was so impressed that he later came to see Rama Tirtha. Roosevelt who described his experience in the newspaper said India's share of the saint I saw nectar. Indian saints do not drink the nectar of eternal truth, but also distribute it. This sequence is made up of thousands of years. When the then Shiv Shankar Mahadev 'Bhavantu Sukin Survey:' The theory was propounded. Shiva the welfare, it's not for everyone individually. Verses of the Rig Veda was hatched for the welfare of everyone. All welfare, immersed in the spirit of continuous disclosure to our saints are eternal truths, but in every other sense of time is expressed. Hiranyakasipu had to embody nursing Vishnu for abuses. Ravana to liberate society from Trs Srivishnu had to embody in Ramrup. Similarly, for the slaughter of Kansa was the incarnation of Krishna. Unlimited ego arises from the opposite sense, which is converted into demoniac powers. Asur is nothing explicit ego. Truth vs. ego see the person stops. He just wants to fulfill his desires. Your ego wants effect. Wants to dominate everywhere. He is ready to give everyone an end to the challenges his authority. The way a person is good or bad drunk loses discretion, in the same way towards the ego loses the person is good or bad conscience. He thinks he is right, it is always so intense. Ego exist today. The right man to destroy the ego can be made.)
Jai Guruji.
No comments:
Post a Comment