मनुष्य को इस संसार में रहते हुए आध्यात्मिक यात्रा भी करनी है। यह शरीर संसार में सत्ता की पहचान करता है और यही परमसत्ता तक ले जाने का कार्य भी करता है। मनुष्य देह परमात्मा की सर्वोत्तम कृति है। संसार के बिना जगत का बोध नहीं हो सकता है और शरीर के बिना आपके व्यक्तित्व का परिचय नहीं हो सकता। शरीर से ही मन को, सूक्ष्म आत्म तत्व को जाना जाता है। संसार के भोग के लिए भी शरीर चाहिए और आत्मबोध के लिए भी यह आवश्यक है। शरीर रूपी घर हमें मिला जरूर है, लेकिन यह हमारा है नहीं। जो संसार हमें मिल गया है, उसी के लिए प्रयत्न क्यों करना है। अपने सम्पूर्ण विकासशील और अंतर्यात्र के लिए स्थित प्रज्ञ बनें। कुछ समय के लिए ठहरने का अभ्यास करें। सारे संसार को चलने दें, बहने दें, उछल-कूद करने दें। अपने आस-पास घटनाएं घटित होने दीजिए, लेकिन स्वयं सिमट जाएं। जिस प्रकार बाहरी प्रहार करने के बावजूद कछुआ अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण बनाए रखता है और विचलित नहीं होता है, ठीक उसी तरह आप भी स्वयं को बाहरी इंद्रियों से शांत रखें। बाहरी स्पंदन, स्पर्श, सुंदरता, मान-अपमान, लाभ-हानि से बचते हुए स्वयं को अंतर्मन में समर्पित करें। यह तभी संभव होगा, जब आप इस पंचभौतिक तन को तपाएंगे। इस नटखट मन को अपनी चिदाग्नि से शांत करेंगे। आपने लोहे को गर्म करते हुए लोहार को देखा होगा। स्वर्ण को दग्ध करते हुए सुनार को भी देखा होगा। कच्चा लोहा, कच्चा सोना, किसी भी तरह से मुड़ने को तैयार नहीं होते हैं, लेकिन जब इन्हें अग्नि में तपा दिया जाता है, तब ये जैसा चाहें, वैसा बन जाते हैं। हम सबके तन और मन के साथ भी कुछ ऐसा ही है। जब तक बिगड़े हुए गाय-बैल की तरह नकेल नहीं पहनाएंगे, तब तक यह बंदर जैसा मन समर्पण नहीं करता है। इसलिए शरीर के न चाहने पर भी आप इसे लचीला बनाएं। इसके हठ और कड़ेपन को तोड़ें। यह शरीर इतनी लंबी यात्रा कर चुका है कि सिर्फ मन की सुनता है। इसे मन की अच्छी बातों को सुनाने के लिए थोड़ा संघर्ष और अभ्यास तो करना ही होगा। फिर यह स्वाभाविक गति में आ जाता है। अगर मन की संकल्प शक्ति से आपने कोई फैसला ले लिया, तो शरीर उसे पालन करने के लिए बाध्य होगा। इसी तरह शारीरिक कष्टों का भी मन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, लेकिन इस प्रभाव को मन की संकल्प शक्ति से काफी हद तक सहनीय बना सकते हैं।
जय गुरुजी.
In English:
(Humans also have to live in this world and the spiritual journey. It identifies the body and the existence of power in the world to take up the task. The best work of the divine human body. The world may not be aware of the world without the body can not be without the introduction of your personality. From body to mind, subtle self known element. For the enjoyment of the world it is essential for the body and self-realization. Body-house we got, of course, but it's not ours. We've got the world, that is why the effort. Be wise in your total for developing and end- travel. Practice stay for some time. Let the whole world, to flow, let spree. Let around the turn of events, but confined themselves to go. Despite the external poke turtle maintains control over his senses and does not deviate, in the same way you keep yourself calm exterior senses. External vibration, touch, beauty, humiliation, loss of profit dedicated to avoiding self-conscience. It would be possible only when you anneal five-physical body. The naughty mind will calm your *Chidagni. You must have seen the blacksmith by hot iron. Scathingly to have seen gold jeweler. Iron, ore, are not ready to turn in any way, but when it is glowing in the fire, then they'd like, become so. We all have to do something with the body and mind. While not hook wear like mutilated cattle, as long as the monkey mind does not surrender. So even if they do not want the body to make it flexible. Break the persistence and hardening. The body has been so long that just listens to mind. To tell the good things of the mind and practice will have to struggle a bit. Then it comes to natural motion. You took a decision to resolve the power of the mind, the body will be obliged to obey him. Similarly, adverse effects on the mind of physical suffering, but the effect of the resolution power of the mind can create quite tolerable.)
*Chidagni - Inner-fire
Jai Guruji.
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