हमें प्रयास करना है कि संसार में अच्छाई को बल मिले। सभी में ईश्वरीय जीवन वितरित हो, धैर्य का जीवन वितरित हो। संतों-ऋषियों को पता होना चाहिए कि अपनी ऊर्जा कहां लगानी है। संतों के श्रेष्ठ जीवन की बड़ी लंबी परंपरा है। इसमें अब शिथिलता आई है। युगों का परिवर्तन होता रहता है, जब कलियुग समाप्त हो जाएगा, तब पुन: सतयुग आएगा। सभी भावों में परिष्कार आएगा, सही भावों में मजबूती आएगी। संतों के संबंध में अपने मनोबल और मनोभावों को यह सोचकर दूषित नहीं करना चाहिए कि अब संत नहीं रहे। ईश्वर की फैक्ट्री कभी बंद होने वाली नहीं है। एक फैक्ट्री बंद होती है, तो तमाम फैक्टियां खुल जाती हैं। जो ईश्वर की प्रक्रिया है, उसमें कभी भी संतत्व लुप्त नहीं होता है। संत ईश्वर के प्रतिनिधि हैं। संत में गुणवत्ता की कमी आ जाना संभव है, लेकिन संतत्व पूरी तरह से कभी लुप्त नहीं होता। लोगों को आज आशंका होती है, संतों पर प्रश्न उठते हैं। फिर भी यदि विवेचना की जाए तो अनेक ऐसे संत मिलेंगे, जिनका जीवन पवित्र है, जो पूरा जीवन समाज के लिए लगा रहे हैं। ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि संपूर्ण संतत्व लांछित हो गया है। जैसे कभी मंदी आ जाती है, मजबूती गायब हो जाती है, तो कभी मंदी दूर हो जाती है, मजबूती आ जाती है। परिवर्तन चलता रहता है, ठीक इसी तरह से संतत्व समाज का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्ष है। संत हमें ईश्वर के प्रतिनिधि रूप में प्राप्त हैं। देवर्षि नारद स्वयं एक संत हैं, हर युग में उनकी उपस्थिति मानी जाती है। वे हमेशा ही रहते हैं। उन्होंने अपने ग्रंथ नारद भक्ति सूत्र में लिखा है कि संत में और भगवान में कोई भेद नहीं होता। भगवान की जो भावना होती है, जो उसके गुण होते हैं, जो उसकी क्रिया होती है, जिस तरह से परिवर्तन होते हैं, वे सभी संतों में भी होते हैं। रामानंद संप्रदाय में एक संत हुए नाभादास। उन्होंने संत चरित्र की रचना भक्तमाल के रूप में की। उन्होंने भी यही कहा कि भक्त और भगवान में भेद नहीं होता। सारे वेदों में संत तत्व एक ही है। संत एक जैसे नहीं होते, लेकिन संतत्व का जो सही परिमार्जित स्वरूप है, वह ईश्वर की भावना का स्वरूप है। इन्हीं भावों को ईश्वरों ने शास्त्रों के रूप में प्रस्तुत किया। संतों ने ईश्वर के लिए समर्पित होकर शास्त्र ज्ञान को संसार के लिए समर्पित किया।
जय गुरूजी.
In English:
(We strive that quantifies the goodness in the world. To be distributed in all divine life, the life of the patient to be distributed. Saints, Rishis should know where their energy is put. Best life of the saints is a very long tradition. It has now sag. Keeps changing eras, when Kali Yuga ends, then again come the Golden Age. All prices will sophistication, right sentiment will grow. Saints in relation to their morale and thinking that emotions should not contaminate that are not saints. God is not going to close the factory ever. A factory is closed, then all Faktiaan open. God is a process, it does not disappear anytime sainthood. Saints are the representatives of God. Decreased saint of quality possible, but sainthood is not never completely disappear. People today is apprehended, the saints have questions. Yet many other saints will then be discussed, whose life is sacred, for the entire life of society are thought. It should not be stigmatized is full sainthood. As ever, there is a slowdown, the strength vanishes, sometimes the recession ends, there is strength. Change continues, ditto sage is the most important facets of society. 1 saint we have received as the representative of God. Narada devarsi a saint himself, his presence is known in every era. They always remain the same. Narada Bhakti Sutras, written in his book that there is no difference between God and the saints. God is a spirit, its properties, its action does not change the way they are in all the saints. Ramanand was a saint Nabadas sect. Bktmal saintly as he composed. He also said that there is a distinction between man and God. There is one element in the Vedas saint. Saints are the same, but the refined appearance of virtue, which is the spirit of God is in nature. These expressions of the Scriptures presented as gods. Saints devoted to the Lord and dedicated to world science knowledge.)
Jai Guruji.
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