Monday, April 25, 2016

त्याग एवं प्रेम के पौधे रोपने होंगे खुशहाल जीवन के लिए...(Plantation of sacrifice and love for life will be happier.)


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एक दिन एक कुत्ता बैलगाड़ी के नीचे चल रहा था। रास्ते में उसे दूसरा कुत्ता मिल गया। उसने पूछा - भैया, आज क्या कर रहे हो?  इस तरह से गाड़ी के नीचे क्यों चल रहे हो? उसने जवाब दिया - अरे, तुम्हें पता नहीं कि मैं चलता हूं, तभी तो यह गाड़ी चलती है। मेरे भरोसे ही यह गाड़ी चल पा रही है। मैं बाहर आ जाऊं तो पता नहीं फिर क्या होगा? इस तरह का अहंकार आधुनिक मनुष्य की भी विडंबना है। अनेक समस्याओं का कारण है यह अहंकार। 

एक छोटे बच्चे से लेकर बड़े से बड़े आदमी में भी यही अहंकार बसा है। किसी में अर्थ का अहंकार है तो किसी में शिक्षा का अहंकार है। किसी में सत्ता का अहंकार है तो किसी में साधुता का अहंकार है। कोई स्वयं को पत्रकार कह कर तो कोई अपने को वकील कह कर, कोई स्वयं को मंत्री कह कर तो कोई स्वयं को संत्री कह कर अहंकारी बना हुआ है। दूसरों को डराए जा रहा है और अपने आप को बड़ा साबित कर रहा है। समृद्धि का घमंड, ऐश्वर्य का घमंड, ज्ञान का घमंड, सत्ता का घमंड उसी क्षेत्र विशेष के यश को नष्ट कर देता है। मानवीय दृष्टि से वास्तव में अहंकार एक विकृति है। 

यह विकृति आज मनुष्य की सहज प्रकृति बन गई है। संत तिरुवल्लुवर ने कहा भी है कि उस मनुष्य का ठाट-बाट जिसे लोग प्यार नहीं करते, गांव के बीचोबीच उगे विषवृक्ष के समान है। 

जो व्यक्ति शांति से जीना चाहें और दूसरों के साथ मिलकर काम करना चाहें और यह चाहें कि हम एक हो सकें और परस्पर कटुतापूर्ण व्यवहार न हो, उन्हें सबसे पहले अहंकार मिटाने पर ध्यान देना होगा। विनम्र बनना होगा। जीवन को खुशहाल बनाने के लिए अहंकार को त्याग कर मृदुता, स्नेह और सच्चे प्रेम के पौधे रोपने होंगे। क्योंकि अहंकार की शिला पर कभी अच्छा फूल नहीं खिल सकता। स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि अहंकार छोड़े बिना सच्चा प्रेम नहीं किया जा सकता। 

आज भी अनेक जगहों पर कोई दलित या हरिजन दूल्हा घोड़ी पर नहीं चढ़ सकता, अनेक मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी है तो अनेक जाति के लोग कुएं से पानी नहीं भर सकते - यह सब इनसे अलग लोगों के अहंकार के कारण है। अहंकार ने इंसानों के बीच दीवारें खड़ी की हैं। उन्हें विभाजित किया है। अहंकार ने समाज को जोड़ा नहीं, तोड़ा ही है। 

अहंकारी और अभिमानी व्यक्ति गुमराह करने वाली बातों को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना कर, निरर्थक श्रम से अंततः कलह ही उत्पन्न करता है। ऐसे व्यक्ति को सबसे ज्यादा आनंद दूसरे को चोट पहुंचा कर ही आता है, किंतु अपने अहंकार पर चोट लगने से तीव्र क्रोध होता है। जीवन में ऐसी स्थिति बिखराव एवं टूटन का सबसे बड़ा कारण बनती है।
जय गुरूजी. 

In English:

(One day a dog was walking down the cart. The second dog found him in the way. She asked - Brother, what are you doing today? Why are you running under the car like this? He answered - Hey, do not you know that I will leave only if the car is moving. Trust me it is not able to train. I go out I do not know what will happen then? Such is the irony of modern man's ego. The ego is the cause of many problems.
From a small child in the great man's ego is settled. If in any sense of ego is an ego of education. If someone else in the holiness of the arrogance of power is arrogance. The reporter by saying no to his lawyer saying no, no self minister saying there is no self-cocky saying Santry. Others are being bullied and prove yourself big. The arrogance of prosperity, opulence vanity, vanity of knowledge, the same arrogance of power that destroys the region's renown. The ego is in fact a perversion of human vision.
This perversion of man's innate nature has become today. Saint Thiruvalluvar also said that people do not love the magnificence of the man, is the center of the village grows like Visvriksh.
Persons who want to live peacefully with others and want to work together and that we want it to be and do not mutually acrimonious behaviour, they first need to focus on eliminating the ego. We have to be humble. Sacrificing softness ego to make life happy, affection and true love will plantation. On the rock of the ego never good flower can not bloom. Swami Vivekananda has said that true love can not be used without leaving the ego.
Today, many places can not climb on a Dalit (cast) or untouchable groom mare, many temples, many people, to have the ban on women entering water from the well can not fill - it is due to the arrogance of all these different people. The walls are erected between the human ego. They are divided. The ego is not added to the society, is broken.
Cocky and arrogant person prestige issue by making misleading things, it generates discord ultimately fruitless labour. Enjoy most to hurt the other person comes, but his ego is intense anger from injury. The biggest such event in the life scatter and tear causes.)
Jai Guruji.

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