वर्तमान परिवेश में समाज में बढ़ते अपराधों व अश्लीलता का एक प्रमुख कारण संस्कारविहीनता भी है। वर्तमान में ऐसे गिने-चुने अभिभावक ही होंगे, जो भौतिकता से कहींदूर अपने बच्चों में संस्कारों पर बल देते होंगे। वस्तुस्थिति यह है कि येन-केन-प्रकारेण धन व साधन जुटाकर अभिभावक अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान लेते हैं, लेकिन कालांतर में अनेक बच्चों द्वारा भविष्य में आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होने पर दुनिया और माहौल को कोसते हैं। शास्त्रों में वर्णित है -‘आचार: परमो धर्म:’ इस आचार को आगे सदाचार में विभक्त किया गया है। महर्षि व्यास द्वारा सोलह प्रकार के संस्कारों का वर्णन किया गया है। संस्कार शब्द का तात्पर्य ही दोषों के निवारण से है। निश्चित रूप से संस्कारों से अंत:करण की शुद्धि होती है। महान विचारक और संत श्रीअरविंद संस्कारों को मानव जीवन के निर्माणकारी सांकेतिक तत्व मानते हैं। वहींस्वामी विवेकानंद के अनुसार मानव चरित्र के निर्माण के लिए संस्कार ही आधारशिला हेँ। यह भी परम सत्य है कि संस्कारविहीनता के कारण ही चरित्रहीनता चरम सीमा पर पहुंची है। आज प्रत्येक रिश्ता तार-तार है। इसी कारण लोगों का आपस में विश्वास उठ गया है। ऐसी स्थिति में समाज की दशा व दिशा स्वयं प्रकट हो रही है।1 मानव जन्म के पश्चात संस्कारों से ही वास्तव में मानव बनता है। इस कारण ही वह चेतना, आनंद, शक्ति व देवत्व का अनुभव करता है। यह सहजता से कहा जा सकता है कि संस्कार शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक शुद्धि के प्रबल साधन हैं और संस्कारों की मुख्य विशेषता यह भी है कि ये जीवन पर्यन्त कायम रहते हैं। महर्षि अंगिरा के अनुसार-जिस प्रकार रंगों से चित्रकार रंग बनाता है, उसी प्रकार विधिपूर्वक किए गए संस्कारों द्वारा ब्रrात्व संपादित होता है। यही कारण है कि संस्कार विकास के अनुसार मानव का समय-समय पर मार्गदर्शन करते हैं और भटकाव, दुख व अवसाद आदि से दूर रखते हैं। बेहतर यही रहेगा कि अभिभावक शिशु को प्रारंभिक अवस्था से ही अच्छे संस्कारों से सुसंस्कृत करें। इससे न केवल समाज में फैला अंधकार दूर होगा, बल्कि भारत का विश्वगुरु बनने का स्वप्न भी साकार होने में कोई संदेह नहीं रहेगा।
जय गुरुजी.
In English:
(In the current environment rite impairment in society is a major cause of rising crime and pornography. Currently only a few parents will focus on the materiality of the values in your children will Khindur. Reality is that any way to collect money and means an end to the parents assume their duties, but over time many children are involved in criminal activities in the future, and a curse on the world. Is described in the scriptures -'achar: Paramo Dharma: "This conduct is further divided into virtue. Maharishi describes the diameter values of the sixteen types. The term refers to the sacrament of the prevention of defects. Certainly values conscience is purification. Great thinkers and symbolic elements saint Sriarvind rituals consider making human life. According to Vivekananda Vhinswami the cornerstone ceremony for the construction of the Hea human character. It is also true that the ultimate cause of Snskarvihinta extreme depravity is reached. Each relationship is now in tatters. Why people have lost faith in themselves. In this case, the state and direction of society is manifest themselves after the birth of human values from 1 to the human form. For that reason, consciousness, bliss, power and divinity experiences. It can easily be said that the rite of physical, mental and spiritual purification and culture of the dominant characteristic of the instrument is that these are retained throughout life. According to Maharishi Angira-way painter paint colors makes precisely the same time r Atw edited by the sacraments. That is why, according to the rites of human development guidance and disorientation to time, grief and depression etc are off. It will be better than good manners cultured from parent to child infancy. This will not only dispel the darkness spread in society, but also to realize the dream of becoming India's Biswguru no doubt.)
Jai guruji.
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